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पत्र: ई० एफ० सी० लेनको


जारी नहीं किये जा रहे हैं। क्या मैं जान सकता हूँ कि वे क्यों जारी नहीं किये जा रहे हैं ?

आपका सच्चा,

ई० एम० जॉर्जेस

गृह-मंत्रीका कार्यालय

केप टाउन

टाइपकी हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५९५८) की फोटो-नकलसे।

३०९. पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

[फीनिक्स
नेटाल]
अप्रैल ८, १९१४

प्रिय श्री लेन

मैंने संघ-सरकारके 'गजट' में विवाह-सम्बन्धी एक घोषणा देखी है। उसके अनुसार मुस्लिम या हिब्रू विवाह-अधिकारियों द्वारा अपने विवाह सम्पन्न करानके इच्छुक व्यक्तियोंको विवाह करनेकी अपनी इच्छाकी सूचना पहलेसे प्रकाशित करा देनी पड़ेगी। मुझे नहीं मालूम कि यह घोषणा सरकारकी भावी नीति बतलानेके लिए जानबूझकर निकाली गई है, या हिब्रू लोगोंके लिए ही यह घोषणा अपेक्षित थी, लेकिन उसमें उल्लिखित नेटाल विवाह-कानूनके सिलसिलेमें मुसलमानोंका जिक्र करना जरूरी हो गया था। यदि पहली बात सही हो, तो मैं जनरल स्मट्सका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि मैने भारतीय समाजकी ओरसे यही कहा था कि भारतीय धार्मिक विधिसे वस्तुतः सम्पन्न पहलेके एकपत्नीक विवाहोंको वैध करार दिया जाना चाहिए और भविष्यमें भी ऐसे विवाहोंको वैध माना जाना चाहिए। उल्लिखित विवाह-सम्बन्धी घोषणा द्वारा विवाहकी इच्छा की पूर्व-सूचना प्रकाशित करानेकी प्रथा लागू की जा रही है। यह एक ऐसी प्रथा है जो हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों ही के रीति-रिवाजोंके सर्वथा विपरीत है, क्योंकि दोनों ही धर्मोकी अपनी-अपनी विधियाँ इतनी विस्तृत है कि उनमें धोखेबाजीके विवाहोंकी गुंजाइश ही नहीं। मैं समझता हूँ कि मुझे इस विषयकी ओर जनरल स्मट्सका ध्यान इस समय आकर्षित कराना ही चाहिए जब कि आयोगकी सिफारिशको प्रभावी बनानेवाले विधानका मसविदा तैयार किया जा रहा है।

श्री मेलरको दिये गय श्री बर्टनके उत्तरसे मझे यह भी पता चला है कि रेलवे विभागने अपने गिरमिटिया भारतीय कर्मचारियोंकी मजदूरीसे तीन-पौंडी करकी आंशिक अदायगीकी किश्तें काट ली है। आयोगने इस करके बारे में जो रुख अपनाया था उससे यह तरीका बिलकुल मेल नहीं खाता। आयोगसे जिन मुख्य-मुख्य विषयोंपर सलाह

१. इसका यह उत्तर दिया गया था कि मामला विचाराधीन है और एशियाई विधान पास हो जानेके बाद ही उसपर कार्रवाई की जायेगी।