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सम्पूण गांधी वाङ्मय


तब हम नम्र रहें, चुप रहें, और जवाब देना पड़े तो कहें कि "मैं अपनी भूल सुधारूँगा, अब मुझे माफ कीजिए।" इसमें यह स्वीकार करनेकी बात नहीं है कि तुमने जानबूझकर अपराध किया है। फिर जब बड़े लोग शान्त हों तब जहाँ शंका हो वहाँ विनयपूर्वक उनसे पूछा जाय। श्री कैलेनबैक शान्त हो जाये तब तुम उनसे पूछ सकते कि सेब सड़े जा रहे थे, अतः उनमें से कुछ देने में क्या दोष हुआ?"

डेविडकी स्तुति समझने लायक है। उनमें उन्होंने दुष्टोंका नाश करनेकी जो इच्छा बताई है उसका रहस्य यह है कि उनसे बुराई सहन नहीं हो सकती थी। यही विचार रामायणमें है। राक्षसोंका संहार देवताओं और मनुष्योंने भी चाहा है। "जय राम रमा" की स्तुतिमें भी यही भावना है। उसका आध्यात्मिक अर्थ यह है कि डविड (अर्जुन-दैवी सम्पत्ति) अपने शत्रु (दुर्योधन आदि-आसुरी सम्पत्ति) का नाश चाहता है। यह सात्त्विक वृत्ति है और भक्तिभाव में यह दशा रहती है। जब ज्ञानदशा उत्पन्न होती है तब दोनों प्रवृत्तियाँ दब जाती हैं और सिर्फ शुद्ध भाव - केवल ज्ञान -- रहता है। इस दशाका वर्णन बहुत करके बाइबलमें नहीं आता। डेविड दोषयुक्त होनेपर भी भक्त थे। और उनकी स्तुतिमें उनके जो उद्गार है उनकी भाषा सरल है। वे महान होनेपर भी ईश्वरके सामने दीन बनकर रहते हैं और अपनेको तिनकेके बराबर समझते हैं।"

[गुजरातीसे]
गांधीजीनी साधना

३११. पत्र : मणिलाल गांधीको

फीनिक्स
नेटाल
शुक्रवार चैत्र वदी ८ [अप्रैल १७, १९१४ ]

चि० मणिलाल,

तुम्हारे पत्र मिले। बा की तबीयत अभी तो फिर सुधरती दिख रही है। वहाँ भी नीचे [ फर्शपर] बैठकर खाना लाभकारी होगा, ऐसा लगता तो है। जिस जगह हम बैठे उसे साफ कर लें तो फिर आपत्ति न होगी। हम नीचे तो सोते ही है इसलिए (नीचे बैठकर) खा भी सकते हैं। जिस जगह खायें वहाँ लीप दिया जाये तो काफी होगा। यदि हमने यह अभ्यास स्वदेशमें पहुँचनेके बाद शरू किया तो अटपटा मालूम होगा। फर्शपर बैठकर खाने में नम्रता है; और इसका यह मतलब हुआ कि हम भी वही कर रहे है जो करोड़ों लोग करते हैं। टेबिलपर बैठकर खानेवाले लोग दुनियामें बहुत थोड़े है।

मेरी खुराकमें १८ खजूर, ९ केले, ३ [?] कच्ची मूंगफली, ४ आमाटुंगुलु और २ नींबू होते हैं। इनमें मैं २ चम्मच तेल मिला लेता हूँ। जो चबाते बन जाये, ऐसा