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३१२. तार : गृह-मन्त्रीको

[फीनिक्स
नेटाल]
अप्रैल २२, १९१४

गृह-मन्त्री

वेरुलम न्यायाधीशके न्यायालयमें तीन-पौंडी करसे सम्बन्धित सजाओंका विवरण मुझे अभी मिला। ये सजाएँ इसी महीने सुनाई गई। भारतीय समाजको सरकारसे कमसे-कम इतनी आशा तो है कि विधान पास होने तक करकी जबरिया वसूली स्थगित की जायेगी। आश्वासनपूर्ण उत्तर मिलनेपर काफी परेशानी और कटुतासे बच सकेंगे।

गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-४-१९१४

३१३. पत्रका अंश

[फोनिक्स
नेटाल]
चैत्र वदी १३ [अप्रैल २२, १९१४]

... आजतक मैंने ऐसी मानसिक उथल-पुथलके दिन कभी नहीं बिताये। मेरा बोलना, चलना, हँसना, फिरना, खाना-पीना, सभी काम यन्त्रवत् चल रहे हैं। कुछ भी लिख नहीं पाता। हृदय, ऐसा जान पड़ता है, बिलकुल शुष्क हो गया है। मेरी इन दिनोंकी वेदनाका पार नहीं है। कई बार तो ऐसा जी हुआ कि चाकू निकाल कर पेटमें भोंक लूं। कई बार सामनेकी दीवारपर सिर दे मारनेका खयाल आया। और कई बार इस संसारसे भाग जानेका विचार किया। किन्तु बादमें सोचा कि अरे भले आदमी, अरे मूर्ख प्राणी, तू इतना पागल क्यों हो रहा है ? यदि तू ऐसी मानसिक वेदनाके समय सन्तुलित नहीं रह सका, तो जो थोड़ा-बहुत ज्ञान मिला है, वह किस कामका? इसी विचारसे मैं अपने ये दिन काट रहा हैं। जो मेरे हितैषी है उनसे इस समय मैं यही कहना चाहता हूँ: "देखो भाई, जे० ने भयंकर पाप किया है।"

फीनिक्स आश्रमके एक ऐसे निवासीके नैतिक पतनका प्रमाण मिलने के कारण, जिसपर गांधीजीको बड़ा भरोसा था।