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१७. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

फीनिक्स
नेटाल
मई ६, १९१४

प्रिय श्री गोखले,

आपका तार मिला; फिर आपका अत्यन्त स्नेहपूर्ण पत्र और डॉ० मेहताका पत्र भी। बड़ी इच्छा है कि आपकी बीमारीके दिनोंमें मैं आपके पास रहूँ; हालांकि हो सकता है, मैं किसी कामका भी साबित न हो सकूँ। आपके तारसे मुझे बड़ी शान्ति मिली, सुविधा भी हुई। श्रीमती गांधीका स्वास्थ्य अब पहलेसे काफी अच्छा है। यदि इसी गतिसे सूधार होता चला गया तो एक महीनम ही उनका स्वास्थ्य लगभग पहले-जस हो जायेगा। तब और नहीं, तो ऐसे भी मैं उनको साथ लेकर लन्दन आ सकूँगा। वहाँ आपसे परामर्श करनेके बाद हम दोनों सीधे भारतके लिए रवाना हो सकते हैं और हम दोनोंकी रवानगीके बाद साथके दूसरे लोग यहाँ लौट सकते हैं। इस तरह मैं बिना अधिक समय गवाये भारत पहुंच सकता हूँ। ज्यादासे-ज्यादा तीन ही हफ्ते लगेंगे। कृपया तार द्वारा सूचित कीजिए कि अब मेरा आना ठीक रहेगा या नहीं। आपका और डॉ. मेहताका पत्र पढ़नके बाद मेरी तो आनेकी बड़ी इच्छा हो रही है। यदि आप मुझे वहाँ आनेसे रोकेंगे, तो बड़ी निराशा होगी। इसलिए यदि आप मुझसे पहले भारत पहुँचनेके लिए रवाना न हो रहे हों तो आशा है कि मुझे आपके पास आनेकी इजाजतका ही तार मिलेगा।

विधेयकका प्रारूप[१]अभी प्रकाशित नहीं हुआ है। इसलिए हो सकता है कि मैं जूनके अन्त तक भी यहाँसे न हिल सकूँ। और यह भी सम्भव है कि अन्तिम रूपसे समझौता होनेकी सम्भावनाकी नौबत ही न आये। तब तो संघर्ष फिर शुरू होगा ही और मैं भारत जानेकी सोच भी नहीं सकूँगा। मैं दोनोंके लिए पूरी तरह तैयार हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३७७६) की फोटो-नकलसे।

  1. १. यहाँ उल्लेख भारतीय राहत विधेयकका है।