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पत्र : मणिलाल गांधीको


करनेवाले विशेष कानून में, तीन-पौंडी करको रद करने के अलावा अन्य किसी भी प्रकारसे हस्तक्षेप करना अवांछनीय समझती है। इसी कारण सरकार धारा ४में उल्लिखित किसी भी व्यवस्थामें रद्दोबदल नहीं करना चाहती। मेरा खयाल है कि श्री गांधीने इस धाराके बारेमें कुछ भी नहीं कहा था।

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स ५५१/५७

३२५. पत्र : मणिलाल गांधीको

[केप टाउन][१]
गुरुवार, [ मई २८, १९१४]

चि० मणिलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। जिस पत्रमें तुम पश्चात्ताप प्रकट कर रहे हो उसी पत्रमें यह भी लिख रहे हो कि उसी दिन तुम साग-जैसी मुख्य वस्तु परोसना भूल गये थे। कहते हो कि वह रह गया लेकिन यह नहीं समझाते कि कैसे रह गया? दोष किसका था? उसकी जिम्मेदारी तुमने किसी दूसरेको क्यों सौंपी? साग प्रेमपूर्वक बनाया तो उसे ले जानेका काम भी तुम्हें ही करना चाहिए था। इसमें से भी कुछ सबक लो तो अच्छा। बीती बातपर दुःख करनेकी जरूरत नहीं है किन्तु उससे सबक अवश्य लेना चाहिए। वहाँ कर्तव्यपरायण बनो और आत्मसंयमकी साधना करो। लेकिन यह सब तब हो सकता जबतक विचार करना न सीखो।

वहाँ सबके प्रति प्रेमभाव रखो। और दूसरों के दोष देखने के बजाय गुण देखो और अपने दोष देखो। बेकारकी बातचीतमें समय न गवाकर विचार करते रहो; एक क्षण भी व्यर्थ गवाना अपने जीवनका उतना अंश खोने और ईश्वरसे उसकी चोरी करनेके बराबर है। इसे समझकर अपने हरएक क्षणका सदुपयोग करना। शरीरको कसना।

विधेयक प्रकाशित हो गया है इसलिए संभव है अगले हफ्ते[२] उसपर विचार हो। लेकिन यह तो अनुमान ही है-देखें, क्या होता है। अभी जनरल स्मट्ससे भेंट नहीं हुई।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू.१०६) से। सौजन्य : सुशीलाबेन गांधी।

  1. १. पत्रमें भारतीय राहत विधेयक (इंडियन्स रिलीफ बिल) के प्रकाशनका उल्लेख है। यह विधेयक गुरुवार, २८ मई, १९१४ को प्रकाशित हुआ था।.इससे जाहिर है कि पत्र उसी दिन लिखा गया था।
  2. २. यह जून २ का पेश किया गया था।