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३२६. राहत विधेयक

बहुत प्रतीक्षित भारतीय विधेयक प्रकाशित हो गया है। हम अनुसूची सहित उसका पूरा पाठ छाप रहे हैं।[१] यह एक सादा और संक्षिप्त-सा विधेयक है और जिस हदतक कानून बनाना आवश्यक है उस हदतक भारतीय आयोगकी सिफारिशोंको कार्यान्वित करता प्रतीत होता है। यह विधेयक वैवाहिक कठिनाईको दूर करता है और भारतीय विवाहोंको वही प्रतिष्ठा प्रदान करता है जो सर्ल-निर्णयके पूर्व वर्तमान थी। यह ३ पौंडी करको मंसूख करने के साथ बकाया रकमकी भी माफी देता है। अन्तमें यह नेटालके अधिवास-प्रमाणपत्रोंको वैध करार देता है बशर्ते कि उसका स्वामी उसपर के अंगठे के निशानको अपना साबित करके उस प्रमाणपत्रको अपना सिद्ध कर दे। विधेयकमें एक और वारा भी है जिससे हमारे समाजका सम्बन्ध नहीं है। यह वह अनुच्छेद है जो सरकारको अधिकार देता है कि वह साधनहीन ऐसे भारतीयके लिए, जो नेटाल अथवा संघके किसी दूसरे प्रान्तमें अपने तथा अपने कुटुम्बके अधिवास सम्बन्धी सब दावोंको छोड़ दे, मुफ्त यात्राका प्रबन्ध कर दे। अबतक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की जा सकती थी।

विधेयकमें कुछ परिवर्तनोंकी जरूरत है। वर्तमान विवाहोंको वैध करार देनेके लिए विधेयकमें जिस साधनकी व्यवस्था की गई है, भावी विवाहोंको वैध करार देनेके लिए उसका उपयोग करना उचित होगा। ऐसी मृत पत्नियोंके बच्चोंकी हिफाजतके लिए भी विधेयक में संशोधनको आवश्यकता पड़ेगी, जो यदि जीवित होती तो वर्तमान विधेयकके अन्तर्गत उन्हें मान्य किया गया होता।

मान लीजिए कि सुझाये गये परिवर्तनोंके साथ यह विधेयक कानून बन जाता है तो भी ऐसे कुछ दूसरे मामले बच रहेंगे जिनकी सिफारिश आयोगने की है या जो श्री काछलिया और श्री गांधीके पत्रों में बताये गये हैं। इनके लिए प्रशासनिक कार्रवाईकी आवश्यकता है और इनमें फ्री-स्टेटका प्रश्न, केपमें प्रवेशका सवाल तथा वर्तमान कानूनोंके प्रशासनका सवाल शामिल है। यदि इनके बारेमें सन्तोषजनक आश्वासन दे दिये जाते हैं तो वर्षोंसे चलनेवाली वह लड़ाई, जिसके कारण हमारे समाजको अपार हानि और कष्ट सहन करना पड़ा है, समुचित और सम्मानजनक ढंगसे समाप्त हुई मानी जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-६-१९१४
  1. १. देखिये परिशिष्ट २५ ।