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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

सत्याग्रहका हेतु पूरा हुआ माना जा सकता है। हमें ऐसे मामलों में अपना मत प्रकट करना ही चाहिए; ऐसा नियम नहीं है। सत्याग्रह कब कर्त्तव्य है, इस प्रश्नका उत्तर एकाएक नहीं दिया जा सकता। सत्याग्रही पहलेसे विचार करने के बाद सत्याग्रह नहीं करता। जहाँ वह अपनी आत्माकी आवाजके विरुद्ध कोई कार्य हुआ देखगा वहाँ वह आत्मबलका प्रयोग करेगा। मैंने जब पहली बार] सत्याग्रह शरू किया तब उसे धर्मका अंग-मात्र माना था। अनुभवसे मालूम हुआ कि यही धर्म है और यही चिन्तामणि है; और इसीलिए वह धर्म के रूप में मुझमें विशेष खिला है। सत्यके सिवा कुछ और करना ही नहीं है, ऐसा निश्चय जिसने किया है, वह सत्याग्रही है और ऐसे मनुष्यको उचित उपाय हमेशा सूझ जाता है। सारा जीवन सत्यमय होना चाहिए और यह धीरे-धीरे यमनियमादिका पालन करते रहनेसे होता है। जैसे स्थूल विषयोंको समझनेके लिए वर्षों तक प्रयत्न करना पड़ता है उसी तरह सत्याग्रहका स्वरूप समझनेके लिए भी प्रयत्न करना चाहिए। ज्यों-ज्यों हमारी और तुम्हारी आत्माके आवरण दूर होंगे त्यों-त्यों आत्मा प्रकाशित होगी और हम बलवान् सत्याग्रहियोंके रूपमें जूझेंगे।

[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीजीना पत्रो

३२९. भारतीयोंकी शिकायतें

विधेयक जिस मूल रूप में प्रसारित किया गया था, पर प्रकाशित [गजट] नहीं, उसमें हमारे पिछले सप्ताहके अग्रलेखमें[१] दिये गये आवश्यक सुझावोंके अनुसार परिवर्तन कर दिया गया है। स्मरणीय है कि मूल मसविदेमें कानूनकी शर्तोके अनुसार विवाहकी वैधता मान्य करानेका आवेदनपत्र देनेवाले भारतीयोंके लिए विवाह-अधिकारीको इस विषयमें सन्तुष्ट करना आवश्यक था “कि इस अधिनियमके आरम्भके समय उनमें ऐसा सम्बन्ध वर्तमान था जो उस भारतीय धर्मके सिद्धान्तोंके अनसार, जिसके वे अनुयायी हैं, विवाहके रूपमें मान्य है।" अब जिस संशोधित रूपमें विधेयक गजटमें प्रकाशित किया गया है उसमें कहा गया है कि अधिकारीको सन्तुष्ट करना होगा कि "उनके बीच ऐसा सम्बन्ध है जो उस भारतीय धर्मके सिद्धान्तोंके अनुसार, जिसके वे अनुयायी है, विवाहके रूपमें मान्य है।" इस प्रकार इस संशोधनसे संघके भीतर या बाहर किये जानेवाले भावी विवाहोंकी वैधता मान्य करानकी भी व्यवस्था हो जाती है। फिर, विधेयकके अनुच्छेद २ उपखण्ड २ में भी संशोधन करके ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि 'सोलह वर्ष से नीचेके बच्चों" में "छूट प्राप्त व्यक्ति तथा ऐसी मृत स्त्रीके बच्चे" भी शामिल हैं," जो यदि जीवित होती तो पत्नी (यहाँ की गई परिभाषाके अनुसार) के रूपमें मान्य होती अथवा छूट प्राप्त आदमीके साथ जिसका विवाह इस अधिनियमके खण्ड २ के अन्तर्गत विवाहके रूपमें पंजीकृत

  1. १. देखिए “राहत विधेयक", पृष्ठ ४१२ ।