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३२७. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

[केप टाउन
जून ५, १९१४

प्रिय श्री गोखले,

आपका तार पाकर कृतज्ञ हुआ। श्रीमती गांधीकी हालत पहलेसे काफी अच्छी है, लेकिन कमजोरी अभी है। यदि आ सकी तो मैं उनको अपने साथ लेता आऊँगा और श्री कैलेनबैकको भी, जिससे कि वे अपने लोगोंसे विदाई ले लें और मेरे साथ भी रह सकें। यदि आप मुझे परिचर्या के लिए अपने पास रहनेकी अनुमति नहीं देंगे, तो मैं आपसे परामर्श लेनेके बाद तुरन्त भारत चल दूंगा।

नहीं जानता, आपका स्वास्थ्य अब कैसा है। इसलिए इच्छा होनेपर भी मैं आपको लम्बा पत्र नहीं लिखना चाहता। फिर भी, मैने सोराबजीको लिखा है कि यदि आप ठीक हो गये हों तो पत्रमें[१] उल्लिखित विषयोंके सम्बन्धमें वे आपसे बात कर लें। उस हालतमें वे आपसे हिदायतें ले लेंगे।

भारतीय विधेयकका प्रथम वाचन हो चका है। वह काफी सन्तोषजनक है और अन्य विषयोंके सम्बन्धमें मैं जनरल स्मट्ससे फिर मलाकात करनेवाला है। इसलिए संघर्षके अन्तिमरूपसे बन्द होनेकी पूरी सम्भावना है। तब तो मैं मध्य जुलाईके आसपास और बना तो उससे भी पहले लन्दनके लिए रवाना हो सकता हूँ। इस पत्रको पाते ही अपने स्वास्थ्यके बारेमें तार भेजनेकी कृपा कीजिएगा। श्री कैलेनबैक अभी इस समय मेरे साथ हैं और आपको अभिवादन कह रहे हैं।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० २२४८) की फोटो-नकलसे।

३२८. पत्रका अंश

केप टाउन मंगलवार,
ज्येष्ठ वदी २ [जून ९, १९१४]

श्री सिन्हाके बारेमें हम इतनी दूर बैठे हुए केवल अखबार पढ़कर कोई मत कायम नहीं कर सकते। श्री नॉर्टन भी ऐसे मामलोंमें एक बार सरकारी वकील थे। नेता किसे कहें और किसे नहीं, यह तो अपने-अपने मतकी बात है। सामान्यतः सत्याग्रही [ऐसे सवालोंमें] तटस्थ रहता है। तुमने जिसका उल्लेख किया है, वैसी स्थितिमें सत्याग्रह किया गया हो और फलस्वरूप जेल जाना पड़ा हो तो

  1. १. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।