पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं अपने आपको किसी अधीनस्थ जातिका सदस्य नहीं मानता। लेकिन इसमें एक बात है, वह यह कि ऐसी कोई चीज आपको ब्रिटिश शासक नहीं देंगे बल्कि आपको अपने प्रयत्नोंसे उसे स्वयं ही प्राप्त करना है। मैं उस चीजको प्राप्त करना चाहता हूँ और प्राप्त कर सकता हूँ। और मैं उसे मात्र अपने कर्त्तव्योंके निर्वाहके बल पर प्राप्त करना चाहता हूँ। मैक्समूलरका कथन है - यद्यपि हमारे अपने ही धर्मकी व्याख्याके लिए हमें मैक्समूलरका सहारा लेनेकी जरूरत नहीं है- कि हमारे धर्मका मर्म “ कर्त्तव्य " शब्दमें निहित है, न कि “अधिकार" शब्दमें। और यदि आप यह मानते हों कि हम जो-कुछ चाहते हैं, वह हमें अपने कर्त्तव्यके और अधिक अच्छे निर्वाह- से प्राप्त हो सकता है तो आप सदा अपने कर्त्तव्यके सम्बन्धमें ही सोचिए। इस ढंगसे जूझते हुए आपको किसी मनुष्यका भय नहीं होगा, आप केवल ईश्वरसे डरेंगे। यही वह सन्देश है जो मेरे गुरु -- और यदि कह सकूं तो आप सबके भी गुरु श्री गोखलेने हमें दिया है। यह सन्देश भारत सेवक समाज (सवेंट्स आफ इंडिया सोसा- इटी) के विधानमें सन्निहित है और इसी सन्देशके अनुसार में जीवन-भर चलना चाहता हूँ। और यह सन्देश है, देशके राजनीतिक जीवन और राजनीतिक संस्थाओंमें अध्यात्म- का समावेश करना । हमें इसे व्यावहारिक रूप देनेके लिए तुरन्त जुट जाना है। विद्यार्थी राजनीतिसे दूर नहीं रह सकते। उनके लिए राजनीति भी उतनी ही जरूरी है, जितना कि धर्म। राजनीतिको धर्मसे अलग नहीं किया जा सकता। धर्मसे विच्छिन्न राजनीति गिरानेवाली चीज बन जाती है। आधुनिक संस्कृति और आधुनिक सभ्यता ऐसी ही राजनीति है। सम्भव है, मेरे विचार आपको स्वीकार्य नहीं हों। फिर भी, मैं तो आपसे वही बात कह सकता हूँ जो बात मेरे अन्तरतममें उथल-पुथल मचाये हुए है। में दक्षिण आफ्रिकाके अपने अनुभवोंके आधार पर दावा करता हूँ कि आपके जिन देशभाइयों पर आधुनिक संस्कृतिका कोई रंग नहीं चढ़ा है, किन्तु जिनमें प्राचीन ऋषि- योंकी शक्ति विद्यमान है; जो अंग्रेजी साहित्यका एक शब्द भी नहीं जानते और न मौजूदा आधुनिक संस्कृतिका ही कोई ज्ञान रखते हैं, किन्तु जिन्हें विरासतमें ऋषियों द्वारा सम्पादित तपश्चर्या प्राप्त हुई है, वे अपनी पूरी ऊँचाई तक उठनेमें समर्थ हैं। और दक्षिण आफ्रिकाके हमारे अशिक्षित और निरक्षर देशभाइयोंसे जितना-कुछ सम्भव हो सका है, हमारी इस पवित्र भूमिमें मेरे और आपके लिए उसका दस गुना कर दिखाना सम्भव है। ईश्वर करे, आपको भी और मुझे भी वह सौभाग्य प्राप्त हो । (हर्ष-ध्वनि)

[ अंग्रेजीसे ]

स्पीचेज ऐंड राइटिंग्ज ऑफ महात्मा गांधी


१. मैक्समूलर (१८२३-१९००); ऑक्सफोर्डेके एक प्रख्यात प्रोफेसर और प्राच्य भाषा-विज्ञानके प्रकाण्ड पण्डित।

२. ये दो वाक्य २८-४-१९१५ के हिन्दूसे लिये गये हैं ।