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७४. पत्रका अंश

[नेलौर

मई ६,१९१५]

मैं यह मानता हूँ कि इन व्रतोंका पालन करनेमें ही कल्याण है। मैं संसारको जीतनेका जबर्दस्त पुरुषार्थ करना चाहता हूँ। जान पड़ता है, देश-सेवामें उस पुरुषार्थका समा- वेश हो जाता है। हमारे उद्देश्य ठीक हैं और मुझे ऐसा लगता है कि उनमें मेरी श्रद्धा अविचल है जो अनुभवसे और भी दृढ़ होती जा रही है। चाहता हूँ कि तुम लोग भी ऐसा ही विश्लेषण करो। मैं यह नहीं चाहता कि तुममें से कोई भी मेरी इच्छाके वशीभूत होकर मेरे विचारोंको मान ले। मैं आग्रह भी नहीं करता। तुम सब इन व्रतोंको तभी लेना जब वे तुम्हें रुचें।

साथमें कई मद्रासी आयेंगे। ऐसा दिखाई देता है कि लोग ज्यादा हो जायेंगे। सलवानके लड़केको साथ ला रहा हूँ। इस लड़केको तुम जानते हो। यह वही छोटा लड़का है जो फीनिक्समें ऊधम मचाता रहता था।

मैं यह पत्र नेलौरसे लिख रहा हूँ, यहाँ एक सम्मेलन' है, उसमें आया हूँ । कल सुबह जाऊँगा ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६७१) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी

७५. वक्तव्य : भारतीय दक्षिण आफ्रिकी संघ,
मद्रासको सभामें

मई ७, १९१५

श्री गांधीने अपने संक्षिप्त वक्तव्यमें कहा कि ट्रान्सवालका सत्याग्रह १९०६ में एशियाई संघर्षके साथ प्रारम्भ हुआ । जैसे-जैसे यह संघर्ष बढ़ता गया, स्वाभाविक रूपसे आवश्यकतानुसार उसका क्षेत्र विस्तृत हो गया और उसमें निम्नलिखित मुद्दे भी शामिल कर लिये गये : (१) दक्षिण आफ्रिका संघके प्रवासी विधानमें से जातीय निर्योग्यताओंको दूर कराना; (२) भारतीय पत्नियोंको चाहे उनका विवाह हिन्दू-धर्मके

१. इस पत्रके पहले चार पृष्ठ खो गये हैं। यह अवशिष्ट भाग भी कई जगह कटा-फटा है।

२. देखिए “पत्र : ए० एच० वेस्टको”, ४-५-१९१५ ।

३. इक्कीसवाँ मद्रास प्रान्तीय सम्मेलन; देखिए “भाषण : नेलौरमें ", ५-५-१९१५ ।

४. जी० ए० नटेसन ऐंड कम्पनीके अहाते में।