कुछ समय खेती में लगायेंगे और उस कामके अभावमें कोई दूसरी तरहका शारीरिक श्रम करेंगे ।
व्यवस्थापकों के विचारसे देशकी गरीबीका मुख्य कारण देशी चरखों और हाथ-करघोंका नष्ट हो जाना है। इसलिए वे स्वयं देशी करधों द्वारा कपड़ा बनेंगे और इस प्रकार यथाशक्ति उसके उद्धारका भरसक प्रयत्न करेंगे।
राजनीति, आर्थिक उन्नति आदि पृथक्-पृथक् विषय नहीं हैं; किन्तु धर्मको इन सबका मूल समझकर व्यवस्थापक राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और लोक-व्यवहार सम्बन्धी विषयोंका धर्म-निष्ठाके साथ अभ्यास करेंगे और करायेंगे। और इन विषयोंसे सम्बन्धित मामलों में यथा-सम्भव उत्साहपूर्वक योग देंगे।
जो लोग ऊपर बताये गये व्रतों और नियमोंका पालन तो करना चाहते हैं; किन्तु जिनमें ऐसा करनेका सामर्थ्य नहीं है वे आश्रममें उम्मीदवारोंके रूपमें प्रविष्ट हो सकते हैं। किन्तु उन्हें भी जबतक वे आश्रम में रहेंगे तबतक व्यवस्थापकोंके लिए पालनीय सब व्रतों और नियमोंका पालन करना होगा। जब उनमें इन व्रतोंके जीवनपर्यन्त पालन करनेकी शक्ति आ जायेगी तब वे भी व्यवस्थापक माने जायेंगे।
१. चार वर्षके या इससे अधिक आयुके लड़के-लड़कियाँ अपने माता-पिताकी स्वीकृतिसे भर्ती किये जा सकते हैं।
२. माता-पिताको बच्चोंके सम्बन्धमें अपने सब अधिकार छोड़ देने होंगे।
३. अध्ययन समाप्त होनेसे पहले विद्यार्थी किसी भी कारण माँ-बापके पास न जा सकेगा।
४. विद्यार्थियोंको व्यवस्थापकों के लिए पालनीय सब व्रतोंका पालन करना सिखाया जायेगा ।
५. उन्हें धर्म, कृषि, बुनाई और पढ़ना-लिखना सिखाया जायेगा।
६. शिक्षण विद्यार्थियोंकी मातृभाषाओंके माध्यमसे दिया जायेगा और उसमें इतिहास, भूगोल, अंकगणित, बीजगणित, भूमिति, अर्थशास्त्र, आदि विषय होंगे। संस्कृत, हिन्दी और किसी एक द्रविड़ भाषाका शिक्षण अनिवार्य होगा।
७. अंग्रेजी दूसरी भाषाके तौर पर सिखाई जायेगी ।
८. उर्दू, बँगला, तमिल, तेलगू, देवनागरी और गुजराती लिपियाँ सबको सिखाई जायेंगी ।
९. व्यवस्थापकोंका विश्वास है कि समस्त पाठ्यक्रम १० वर्षमें पूरा हो जायेगा । वयस्क होने पर विद्यार्थियोंसे ये व्रत लेनेको कहा जायेगा। तब जिन्हें आश्रम के उद्देश्य और नियम पसन्द न होंगे उन्हें उसे छोड़ देनेकी स्वतन्त्रता होगी ।
१. तीसरी आवृत्तिमें इसे यों बदल दिया गया था: "बारह वर्षसे कम आयुके लड़के और लड़कियाँ यदि उनके माँ-बाप प्रविष्ट न हों तो प्रवेश न पा सकेंगे।”
२. यह वाक्य तीसरी आवृत्तिमें निकाल दिया गया था।