पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/१४

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आठ

इस अवधिमें गांधीजीने तिलक, श्रीमती बेसेंट, लाला लाजपतराय, पंडित मदन- मोहन मालवीय आदि अनेक जननायकों और लोकसेवी व्यक्तियोंसे सम्पर्क भी बढ़ाया । भारत सेवक समाजके सदस्योंसे उनका विशेष सम्बन्ध रहा। इसके अतिरिक्त विनोबा, मशरूवाला, महादेव देसाई, राजेन्द्रप्रसाद, कृपलानी, कालेलकर, जमनालाल बजाज, ऐन्ड्रयूज-जैसे आत्मत्यागी कार्यकर्त्ता भी इसी अवधिमें उनके सम्पर्कमें आये । अन्य खण्डोंकी तरह इस खण्डमें भी उनके व्यक्तिगत पत्रोंकी संख्या पर्याप्त है। इनमें से कुछ उपर्युक्त सज्जनोंको और कुछ अन्य लोगोंको लिखे गये हैं। उनके सामान्य लेखन और सार्वजनिक भाषणोंकी तुलनामें इन पत्रोंका स्वर किंचित् मीठा और अनौपचारिक है । कुमारी एस्थर फैरिंगको लिखे उनके पत्र पहले-पहल इसी खण्डमें आये हैं । आत्मीयता इन पत्रोंका उद्गम है । ऐसा जान पड़ता है कि मानो गांधीजी कर्म-संकुल सार्वजनिक जीवनकी क्लांतिको ताजगी और स्फूर्ति देनेके लिए आत्मीयताकी इस गंगामें अवगाहन करते थे। पत्रोंके द्वारा अत्यन्त आत्मीय भावसे मनकी बात कहकर वे जैसे खुद राहत महसूस करते थे; और दूसरोंको तो उससे बल और प्रेरणा मिलती ही थी । उनके शब्दोंमें "मेरी श्रद्धाने मेरी रक्षा की है -- स्नेहको विनयशील और धैर्यवान होना चाहिए।"