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९७. पत्र : महात्मा मुन्शीरामको

अहमदाबाद

जेठ शुक्ल २ [ जून १४, १९१५/१

महात्माजी,

लड़के सब गुरुकुलसे आनेके बाद में सब व्यवस्था करनेकी जंजालमें पड़ गया; उसलीये आपको में पत्र अगाडी न लीख सका। लडकोंकी पर आपने जो प्रेम बतलाया है वह वे कभी भूल नहि सकते है। मेरे लडकों और साथीओंको आश्रय देकर मुझको आपका ऋणी बनाया है।

अमदाबादमें हाल तो आश्रम खोल दीया है। उसकी नियमावली हिंदी में बन रही है। तैयार होने से आपका अभिप्रायके लीये भेजी जायगी।

हरद्वारमें फेर आकर आपकी साथ कुछ दिन रहनेकी बात में बीलकूल भूला नहि हुँ । वखत मीलनेसे में जरूर पहोंचुंगा।

आपका कृपाकांक्षी,

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल हिन्दी पत्र (जी० एन० २२०८) की फोटो-नकलसे ।

९८. पत्र : जे० बी० पेटिटको

अहमदाबाद

जून [१६], १९१५

प्रिय श्री पेटिट,

दक्षिण आफ्रिकी सत्याग्रहसे सम्बन्धित ३१ जनवरी १९१५ तकके आय-व्ययका ब्यौरा इस पत्रके साथ भेज रहा हूँ।

मुझे आशा थी कि हिसाब जल्दी प्रकाशित किया जा सकेगा परन्तु मेरी इच्छाके विपरीत इसमें देर हो गई। श्री गोखलेका विचार यह था कि ब्यौरेके साथ

३. देखिए "डायरी : १९१५ "।

१. पत्रमें जिन लड़कों और अध्यापकोंका उल्लेख है वे मगनलाल गांधी के साथ २३ मई, १९१५ को गुरुकुल काँगड़ी, हरदारसे अहमदाबाद पहुँच गये थे; देखिए “यद्यपि इस दिन गांधीजी बम्बईमें थे, उन्होंने अहमदाबादका पता सम्भवतः इसलिए लिख दिया होगा क्योंकि वे अगले दिन बम्बईसे अहमदाबादको रवाना होनेवाले थे

२. हिसाबका यह मसविदा दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कोषके मन्त्री, श्री जहाँगीर बोमनजी पेटिको भेजा गया था। यह मसविदा पाद-टिप्पणीमें बताये गये परिवर्तनों और परिवर्धनोंके साथ ३१ अक्तूबर १९१५ को प्रकाशित किया गया।

३.देखिए "डायरी:१९१५"।