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१००. पत्र: जनरल ट्रैफिक मैनेजरको

अहमदाबाद

[जून २८, १९१५]

जनरल ट्रैफिक मैनेजर

जी० आई० पी० रेलवे

बम्बई

महोदय,


में इसी २७ तारीखको तीसरे दर्जेका वापसी टिकट लेकर पूनासे बम्बई गया था और मैंने किरकीसे गत शनिवारकी शामको ४.४५ बजेकी गाड़ी पकड़ी थी। चूंकि मेरा टिकट केवल दादर तक का था और मैं विक्टोरिया टर्मिनस तक जाना चाहता था, इसलिए मैंने एक अधिकारीको सूचित कर दिया कि मैं अपने गन्तव्य स्थानसे आगे यात्रा कर रहा हूँ। मैंने दादरमें यह सूचना देनेका प्रयत्न किया था, किन्तु मैं परेलमें ही ऐसा कर सका। मुझे बादमें मालूम हुआ कि यह अधिकारी ब्रेकमैन था । उसने मुझसे कहा कि मैं बड़े गार्डको सूचना दूं। चूंकि उसका डिब्बा दूर था, इसलिए मैं यह सूचना नहीं दे सका। मस्जिदमें अधिकारियोंने मुझसे दादरसे वहाँतक का किराया वसूल कर लिया और मेरी आपत्तिके बावजूद सामान्य जुर्माना भी ले लिया। उन्होंने ब्रेकमैनसे भी पूछा कि क्या मैंने उसे विधिवत् सूचना दे दी थी। मस्जिदके अधिकारि- योंने कहा कि वे मुझे जुर्मानेसे तभी छूट दे सकते हैं जब मैं गार्ड या स्टेशन मास्टर- का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करूँ। आप जानते ही हैं कि मैं प्रमाणपत्र प्रस्तुत करता तो गाड़ी छूट जानेका भय था। में जिस अधिकारीके पास इस जोखिमके बिना जा सकता था उससे मैंने प्रमाणपत्र माँगा। किन्तु उसने मुझे प्रमाणपत्र नहीं दिया। में इस घटना- की ओर आपका ध्यान आकर्षित करता हूँ, क्योंकि मैंने प्रायः यह देखा है कि तीसरे दर्जेके यात्रियोंको अधिकतर अकारण ही दण्ड दिया जाता है। आप इस मामलेमें जाँच करेंगे तो मैं आभार मानूंगा। मेरी रायमें या तो स्टेशन मास्टरको यह हिदायत दे दी जाये कि जब यात्री कम्पनीके किसी रेल अधिकारीको जहाँतक टिकट है उससे आगे यात्रा करनेकी खबर दे दे तो स्टेशन मास्टर उससे जुर्माना वसूल न करे या इस आशयकी कड़ी हिदायत कर दी जाये कि सम्बन्धित अधिकारी तुरन्त प्रमाणपत्र दे दें। यदि ब्रेकमैनको प्रमाणपत्र देनेका अधिकार नहीं है तो क्या गार्डको तुरन्त यह सूचना देना भी उसका कर्त्तव्य नहीं है कि एक यात्री टिकट न होने पर भी आगे यात्रा कर रहा है और उसने सामान्य प्रमाणपत्र माँगा है?

१. यह तारीख जनरल टैफिक मैनेजरके उत्तरसे ली गई है।