मैं इसके साथ किराये और जुर्मानेकी रसीद भेज रहा हूँ।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६२००) की फोटो-नकलसे।
[ जुलाई ७, १९१५ के बाद ]
[चि० मणिलाल],
...तुम्हारे तमिल पढ़नेका बन्दोबस्त कर दूंगा। कितना अच्छा हो यदि तुम जिस विषम स्थितिमें हो उससे कुछ दृढ़ बनकर निकलो । किन्तु सोच-समझकर दृढ़तर बनोगे तभी ठीक होगा। तुम्हारे पास जब पैसा खत्म होने लगे तो मुझे सूचित करना । पत्र लिखते रहना। हिम्मत तनिक भी न हारना । गरीब लोग कैसा करते होंगे, यह बात याद रखकर काम चलाना।
बापूके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ९९) की नकलसे। सौजन्य : सुशीलाबेन गांधी
जुलाई ११, १९१५
सभापति महोदय, भाइयो और बहनो, श्रीमती रानडेने जो संवेदनापूर्ण शब्द कहे हैं उनके बाद मेरा कुछ और कहना कदाचित् धृष्टता होगी। वे मेरे गुरुके गुरुकी विधवा हैं, यह बात इस कार्यक्रमको अतिरिक्त गम्भीरता दे देती है। और सम्भव है में कुछ कहूँ तो उससे इस गम्भीरताको हानि पहुँचे । तथापि श्री गोखलेका शिष्य होनेके नाते यदि में कुछ व्यक्तिगत संस्मरण सुनाऊँ तो आशा है आप मुझे क्षमा करेंगे ।
१. कार्यवाहक डिप्टी ट्रैफिक मैनेजर (कमर्शियल) ने इसका उत्तर १८ जुलाईको देते हुए लिखा था: “जाँचसे मुझे पता चला है कि आपने विक्टोरिया टर्मिनस तक यात्रा करनेकी सूचना दादरमें नहीं दी और चूँकि गाड़ीके कर्मचारियोंको सूचना देनेसे पूर्व आप परेल तक जा चुके थे, इसलिए आपसे जुर्माना ठीक ही वसूल हुआ है और आपको कोई राहत नहीं दी जा सकती।
२. इस पत्रका पहला पृष्ठ उपलब्ध नहीं है।
३. मणिलाल जुलाई ७, १९१५ को मद्रास गये थे।
४. गांधीजीने श्रीमती रमाबाई रानडेके निम्नलिखित प्रस्तावका समर्थन किया था: यह सम्मेलन स्वर्गीय श्री गोपालकृष्ण गोखलेकी असामयिक मृत्युसे, जिसका चारों ओर दुःख मनाया जा रहा है, इस देश तथा साम्राज्यको हुई महान् हानिपर अपना गहन शोक अभिव्यक्त करता है। अपने देशके लिए जीवन अर्पित करनेवाला ऐसा आत्मत्यागी और निष्ठावान देशभक्त तथा दूरदर्शी राजनीतिज्ञ आजतक नहीं हुआ ।