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भाषण: बम्बई कांग्रेसमें भारत और उपनिवेशोंके सम्बन्धमें

देशवासी श्री गोखलेकी “पवित्र स्वीकृति” की मुहर लगी हुई है। उन्होंने अनुरोध किया था कि वे युद्धके चलते हुए भी इस प्रथाको रद करनेका आग्रह करें।

श्री के० एन० अय्यरने प्रस्तावका समर्थन किया। उन्होंने कहा कि चतुरसे-चतुर मानव भी इस प्रथामें सुधार नहीं कर सकता इसलिए इसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

श्री मजुमदारने अनुमोदन करते हुए कहा कि मनुष्य इससे अधिक घृणित प्रथाका आविष्कार नहीं कर सकता।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २५-१२-१९१५
 

१४६. भाषण: बम्बई कांग्रेसमें भारत और उपनिवेशोंके सम्बन्धमें

दिसम्बर २८, १९१५

श्री मो० क० गांधी (बम्बई) ने २८ दिसम्बर १९१५ को राष्ट्रीय महासभा कांग्रेसके बम्बईमें किये गये ३० वें अधिवेशनमें भारत और उपनिवेश-सम्बन्धी प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

उन्होंने कहा:

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

मुझे जो प्रस्ताव रखना है वह इस प्रकार है:
यह कांग्रेस खेद प्रकट करती है कि उपनिवेशीय राजनीतिज्ञोंकी उदारता और साम्राज्यीय घोषणाओंके बावजूद दक्षिण आफ्रिका और कनाडामें भारतीयोंको प्रभावित करनेवाले वर्तमान कानून न्यायपूर्वक और समभावसे अमलमें नहीं लाये गये हैं। कांग्रेसको विश्वास है कि स्वशासित उपनिवेश भारतीय प्रवासियोंको यूरोपीय प्रवासियोंके बराबरके अधिकार देंगे और साम्राज्य सरकार भारतीयोंको वे अधिकार दिलानेके यथासंभव सभी उपाय काममें लायेगी, जिनसे भारतीय अभीतक अन्यायपूर्वक वंचित रखे गये हैं और जिसके परिणामस्वरूप उनमें व्यापक

असन्तोष और अशान्ति उत्पन्न हो गई है।

मैं पत्रोंके संवाददाताओंसे यह अनुरोध करता हूँ कि वे ‘समानरूपसे’ (इक्वली) के स्थानमें ‘न्यायपूर्वक’ (इक्वीटेबली) शब्द कर लें, क्योंकि गत रात विषय समितिकी बैठकमें यही शब्द तय किया गया था।

मित्रो, यह भाग्यकी विडम्बना ही है कि जिस समय यह विराट कांग्रेस स्वशासित सित उपनिवेशों द्वारा अपनाये गये रुखपर खेद प्रकट कर रही है, उसी समय हमारे भारतीय भाइयों द्वारा दक्षिण आफ्रिकामें बनाया गया एक दल बीमारों और घायलोंकी सहायता करनेके लिए युद्धक्षेत्रके समीप पहुँच रहा होगा। दक्षिण आफ्रिकामें बनाये गये