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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है कि आप अपने विद्यार्थी-जीवनमें राजनीतिका अध्ययन ही न करें। राजनीति हमारे जीवनका एक अंग है; हमें अपने राष्ट्रकी संस्थाओंका ज्ञान होना चाहिए और अपने राष्ट्रीय विकासको तथा अन्य बातोंको समझते रहना चाहिए। यह बचपनसे ही प्रारम्भ किया जा सकता है। इसीलिए हमारे यहाँ आश्रममें हर बालकको देशकी राजनैतिक संस्थाओंको समझनेको शिक्षा दी जाती है और बताया जाता है कि देशमें किस प्रकार नई भावनाओं, नई महत्त्वाकांक्षाओं और नई जिन्दगीकी लहरें उठ रही है। किन्तु हमें धर्मके निष्कम्प और अमोघ प्रकाशकी भी आवश्यकता है――उस धर्मके जो केवल बुद्धिको ही नहीं छूता, हृदयपर अमिट छाप डाल देता है। पहले हमें इसीके साक्षात्कार धार्मिक चेतनाकी आवश्यकता है। जहाँ यह साक्षात्कार हुआ, मुझे लगता है जीवनका भण्डार हमारे लिए खुल जाता है और तब फिर विद्यार्थी और अन्य सभी लोगोंका कर्त्तव्य हो जाता है कि वे इस परिपूर्ण जीवनमें हाथ बँटायें ताकि जब वे बड़े हों, विद्यालयोंको छोड़कर बाहर जायें, तब वे उचित रूपसे जीवनके साथ जूझनेके योग्य होकर आयें――आज तो यह होता है कि उनका राजनैतिक जीवन बहुत हदतक उनके विद्यार्थी जीवन तक सीमित रहता है; जैसे ही वे विद्यालयोंसे निकले और विद्यार्थी नहीं रहे कि सब कुछ भूलकर नगण्य वेतनपर नगण्य नौकरियाँ ढूँढ लेते हैं; तब न कोई महत्त्वाकांक्षा बचती है, न ईश्वरका ध्यान। तब उनका उस ताजी हवा, उज्ज्वल प्रकाश तथा सच्ची और शक्तिशाली स्वतंत्रतासे कुछ लेना-देना नहीं रह जाता जो मेरे द्वारा आपके सामने प्रस्तुत इन नियमोंके पालनसे प्राप्त होती है।

उपसंहार

मैं यहाँ आप लोगोंसे यह नहीं कह रहा हूँ कि आप लोग बड़ी संख्या में आश्रम पहुँचने लगें; वहाँ स्थानका अभाव है। परन्तु मैं कहता हूँ कि आप लोग अकेले खुद और सामूहिक रूपसे भी उस आश्रमका जीवन व्यतीत कर सकते हैं। जो नियम मैंने आप लोगोंके समक्ष प्रस्तुत किये हैं उनमें से अपने लिए आप जो-कुछ भी पसन्द कर लेंगे और उसपर अमल करेंगे तो मैं उतनेसे ही सन्तुष्ट हो जाऊँगा। परन्तु यदि आप यह सोचते हैं कि उपरोक्त बातें किसी पागल मनुष्यके उद्गारमात्र हैं तो आप मुझे बता देनेमें संकोच न करें और आपके निर्णयको मैं पूर्ण सद्भावनाके साथ और बिना किसी प्रकारके आश्चर्यकी भावनाके स्वीकार करूँगा। (जोरकी तालियाँ)[१]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन रिव्यू, फरवरी १९१६
 
  1. १. यह अनुच्छेद न्यू इंडिया, १६-२-१९१६ से लिया गया है।