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भाषण: जाति-प्रथाके सम्बन्ध में

आधारित रहा है, धर्मग्रन्थोंपर नहीं। यह न समझ लेना चाहिए कि जाति-व्यवस्था, खान-पानकी एकता और परस्पर विवाह-सम्बन्धपर आधारित रही है। खान-पानकी एकता और परस्पर विवाह सम्बन्धपर मैत्री निर्भर होती तो जर्मन और अंग्रेज आपसमें न लड़ते। काठियावाड़के राजपूतोंमें खान-पान और परस्पर विवाह-सम्बन्ध है; किन्तु फिर भी उनमें पारस्परिक लड़ाइयोंका अन्त नहीं। इसके बावजूद जाति-बन्धनमें एक अच्छाई है। पुत्री और पिता स्वभावतः एक ही समुदायमें रहना चाहते हैं। इसीसे जाति अथवा समुदायका स्वभावतः निर्माण होता है; किन्तु जातियोंमें जो खराबी आ गई है वह समय रहते दूर की जानी चाहिए। अब कन्याओं, विधवाओं और विधुरों आदिसे सम्बन्धित लौकिक प्रश्नोंपर चर्चा करनेकी आवश्यकता है। इसके लिए विचार-शक्तिकी आवश्यकता तो है, किन्तु उसका सम्बन्ध अक्षर-ज्ञानसे नहीं है। हमारे देश में छः करोड़ अस्पृश्य या अन्त्यज हैं। इनकी दशा सुधारनेकी आवश्यकता है; क्योंकि हिन्दू-जातिके माथेपर यह एक भारी कलंक है जिसके लिए भारतको बहुत बड़ा प्रायश्चित्त करना पड़ेगा।

मेरे आफ्रिकामें किये गये संघर्षमें गोरे लोग मुझसे कहते थे, “जब तुम अपने अस्पृश्योंके प्रति दुर्व्यवहार करते हो तब तुम्हें हमसे सद्व्यवहारकी माँग करनेका क्या अधिकार है?”] इस दलित-वर्गका उद्धार अनिवार्य रूपसे आवश्यक है। इस सम्बन्धमें श्री गोखले और सर शंकरन् नायरका[१] भी यही मन्तव्य था। पंजाबके लोगोंको जब स्थानीय ढेड़ोंकी जरूरत पड़ती है तब वे उनके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, किन्तु जब काम निकल जाता है तब वे फिर पूर्ववत् व्यवहार आरम्भ कर देते हैं। उनका यह आचरण धर्मकी भावनाके विरुद्ध है। उनके साथ सदा अच्छा व्यवहार करना चाहिए और हम जिस कार्यको धर्म-भावसे करेंगे उस कार्यमें हमें अवश्य सफलता मिलेगी।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, ११-६-१९९६
 
  1. १. सर चेटिटयार शंकरन नायर (१८५७-१९३४); भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष, १८९७; मद्रास उच्च न्यायालयके न्यायाधीश, वाइसरॉयकी कार्यकारिणीके सदस्य नियुक्त, १९१५; (पंजाबमें मार्शल-लो जारी रखनेके प्रश्नपर त्यागपत्र, १९१९); अपनी पुस्तक गांधी ऐंड अनार्की में गांधीपर आक्षेप; इस पुस्तक के सम्बन्ध में पंजाबके तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर ओडायरने इनपर मुकदमा चलाया; और इन्हें ३ लाख रुपया हर्जाना देना पड़ा।