पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३१६

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२०५. पत्र: नरहर शम्भूराव भावेको[१]

[अहमदाबाद
जून ७, १९१६ के बाद][२]

आपके पुत्र विनोबा[३] मेरे पास हैं। आपके पुत्रने इतनी अल्प आयुमें इतनी आत्मिक उच्चता और वैराग्य-भावना प्राप्त कर ली है जितनी मैंने धैर्यपूर्वक इतना परिश्रम करके इतने वर्षोंमें प्राप्त की है।

[मो० क० गांधी]

[अंग्रेजीसे]
लाइफ ऑफ विनोबा, पृष्ठ

२०६. पत्र: ए० एच० वेस्टको

अहमदाबाद
जून १५ [१९१६][४]

प्रिय वेस्ट,

अब हम यह मानकर ही चलें कि हिसाबके बारेमें हममें मतभेद है। मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि पिछले प्रकाशित हिसाबकी तारीखके बादका सत्याग्रहका खर्च और बैंकमें जमा रकम मुझे लिख भेजो। निश्चय ही यह सब तुम्हारी बहियोंमें मौजूद है। यदि तुम यह कहो कि हमारे बही-खातों में सत्याग्रहका हिसाब नहीं है तो मुझे परेशानी होगी। मगर मैं जानता हूँ कि ऐसा नहीं है। ये रकमें मुझे लिख भेजो।

यह हुई काम-काजकी बात। बातचीतकी शैलीमें लिखा तुम्हारा पत्र मिल गया है। मैंने तुम्हें जिस रूपमें जाना है, तुम्हारा वही रूप उसमें ओतप्रोत है। इसमें मुझे कभी सन्देह नहीं रहा है कि तुम अपनी स्पष्टवादितासे अधिकारियोंमें प्रवेश पा सकोगे। प्रतिरोधके तुम्हारे नये ढंगसे उन्हें पहले-पहल शायद धक्का लगता है; किन्तु बादमें वे प्रसन्न ही होते हैं। लोग ‘जी हजूरों’ से ऊब भी जा सकते हैं। लोग उस कामको पसन्द करें या न करें, वे उसे चाहें या न चाहें; तुम उसे जारी रखो। पसन्द किये जानेकी राह देखनेकी जरूरत नहीं है। तुम जो-जो पत्र भेजना चाहो, अवश्य भेज देना। मैं उन सबको

  1. १. आचार्य विनोबाके पिता, जो उस समय बड़ौदामें थे।
  2. २. विनोवा गांधीजीसे कोचरन आश्रम में जून ७, १९१६ को मिले थे।
  3. ३. विनोबा भावे (१८९५- ) भूदान आन्दोलनके प्रणेता, सर्वोदयी नेता और सन्त।
  4. ४. चूँकि पत्र में सत्याग्रहके हिसायका उल्लेख है, इसलिए यह १९१५ या १९१६ का लिखा हो सकता है । १९१५ में १५ जूनको गांधीजी अहमदाबादमें नहीं थे।