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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हड़तालके नेताओंके निर्वासनसे सम्बन्धित बहसमें बोलते हुए सत्याग्रह और हड़तालका अन्तर बताकर हमारी स्थितिको उचित ठहराया था। अब वहाँ सहानुभूतिकी भावना व्याप्त है और मेरा खयाल है, सरकार हमारे दक्षिण आफ्रिकी भाइयोंको प्रभावित करने- वाला कोई भी विशेष कानून पास करानेकी जिम्मेदारी हाथमें लेनेसे पूर्व भारतीयोंकी राय लेनेकी इच्छा रखती है। इसलिए भविष्यके सम्बन्धमें मैं पूर्णतः आशावान् हूँ। ऐसी बात नहीं है कि समस्त निर्योग्यताएँ दूर कर दी गई हैं, फिर भी अधिकांश दूर कर दी गई हैं; और यदि हम अपना व्यवहार ठीक रखें और सरकारका प्रशासन सहानुभूतिपूर्ण हो तो फिर उन कष्टोंके पुनः सामने आनेकी कोई शंका नहीं होनी चाहिए जो हममें से जाने कितने लोगोंको उठाने पड़े थे।

भावी गतिविधियोंके सम्बन्धमें पूछे जानेपर श्री गांधीने कहा कि मैं भारतमें स्थायी रूपसे रहने के इरादेसे आया हूँ और यदि परिस्थितियोंने मजबूर नहीं कर दिया, तो मैं दक्षिण आफ्रिका वापस नहीं जाऊँगा। मैं नहीं जानता कि मैं यहाँ क्या करूँगा, किन्तु मेरी सेवाएँ श्री गोखलेके सुपुर्द हैं। मैं उन्हें वर्षोंसे अपना मार्गदर्शक और नेता मानता आया हूँ और मेरी गतिविधियोंका नियन्त्रण और निर्देशन बहुत-कुछ वे ही करेंगे। श्री गांधीने अन्तमें कहा :

फिलहाल, जैसा श्री गोखलेने कहा है, चूंकि मैं इतने लम्बे अर्से तक भारतसे बाहर रहा हूँ इसलिए जो मामले मुख्यतः भारतसे सम्बन्धित हैं उनके बारेमें कोई निश्चित निष्कर्ष निकालनेकी मुझे कोई जरूरत नहीं है और मुझे यहाँ एक प्रेक्षक और विद्यार्थीके रूपमें कुछ समय व्यतीत करना चाहिए। मैंने ऐसा करनेका वचन दिया है, और मैं आशा करता हूँ कि मैं इस वचनको निभा सकूँगा|

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, ११-१-१९१५

२. भेंट : 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के प्रतिनिधिको

जनवरी ९, १९१५

दक्षिण आफ्रिकाम भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें प्रश्न किये जाने पर उन्होंने [गाँधीजीने] कहा : उनकी स्थिति जैसी समझौतेसे पहले थी, अब उससे बहुत अधिक अच्छी है; क्योंकि जिन मुद्दों को लेकर सत्याग्रह प्रारम्भ किया गया था, वे सब मंजूर कर लिये गये हैं। मेरे खयालसे भारतीय समाज कुल मिलाकर [ भारतीयोंको] राहत देनेवाले उस कानूनसे, जो अब पास भी हो चुका है, सन्तुष्ट है। भविष्य बहुत कुछ स्वयं भारतीयोंपर और मन्त्रिमण्डलके सदस्योंपर निर्भर है।

१. देखिए “अहमदाबाद में नागरिकों के मानपत्रका उत्तर", २-२-१९१५

२. भारतीय राहत विधेयक ( इन्डियन्स रिलीफ बिल, १९१४); देखिए “पत्र : लाजरसको ",१७-४-१९१५ के बाद ।