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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पहले कह चुका हूँ कि जातिको हमने धार्मिक स्वरूप दिया है; अर्थात् जाति केवल संयम रखनेका साधन है। जाति हमारे भोगोंकी परिसीमा निश्चित करती है, अर्थात् उसके बाहर भोग भोगनेका हमें अधिकार नहीं है। अन्य जातियोंके लोगोंके साथ हमारा रोटी-बेटीका सम्बन्ध नहीं हो सकता। इस योजनासे अनाचारमें कमी होना बहुत सम्भव है। सहभोजसे एकता बढ़ती है, यह बात अनुभवके विरुद्ध है। इससे मित्रता बढ़ती होती तो यूरोपमें वर्तमान महायुद्ध क्यों छिड़ता? सबसे अधिक झगड़े तो सम्ब- न्धियोंमें ही होते हैं। भोजनको व्यर्थ ही हमने इतना महत्त्व दिया है। भोजन-क्रिया उतनी ही गन्दी है जितनी कि शौच-क्रिया। अन्तर इतना ही है कि शौच-क्रियाके अनन्तर हमें शान्ति मिलती है और यदि जीभ वशमें न रखी जाये तो भोजनके बाद हमें बेचैनी होती है। जिस तरह हम लोग शौच आदि क्रियाएँ एकान्तमें करते हैं उसी तरह भोजन आदि क्रियाएँ भी जो हममें और पशुओंमें सामान्य हैं, हमें एकान्तमें ही करनी चाहिए। यदि यह वाक्य सत्य है कि “भोजन केवल शरीर चलानेके लिए है” तो स्पष्ट है कि इस सम्बन्धमें जितना कम आडम्बर किया जाये उतना ही अच्छा है।

जो बात भोजनके सम्बन्धमें कही गई है वही विवाहके सम्बन्धमें भी कही जा सकती है। जाति-विशेषका बाहरवालोंसे विवाह-सम्बन्ध न करना संयम ही है। और संयम सदा सुखद ही होता है। सम्बन्धके जालको जितना ही फैलायेंगे उतना ही संकट बढ़ता जायेगा। इसीलिए मुझे अपने ही वर्गके लोगोंमें वर-वधू ढूंढ़नेमें कोई द्वेष नहीं जान पड़ता। इंग्लैंडके “ब्ल्यू ब्लड” (अतिजातिवादी सिद्धान्त) का रहस्य भी यही है। लॉर्ड सेलिसबरी[१] कहते थे कि वे एलिजाबेथके वंशज हैं। यह बात उन्हें और ब्रिटिश जनता दोनोंको अभिमान करने योग्य लगती थी।

इस प्रकार भोजन और विवाह-सम्बन्धी बन्धन साधारणतः प्रशंसनीय हैं। इसमें अपवाद हैं और रहेंगे। यह बात हिन्दू समाजने जाने या अनजाने स्वीकार की है। परन्तु वस्तुतः सोचें तो इसमें कोई अपवाद नहीं है। मैंने भंगीके साथ भोजन किया और इसीमें अपने विचारानुसार विशेष संयम समझा तो इस सम्बन्धमें जातिको कुछ नहीं करना है अथवा अपनी जातिमें अपने योग्य वधू न मिले तथा अविवाहित रहनेकी अवस्था में विषय-लम्पट हो जानेकी सम्भावना हो, उस स्थितिमें यदि मैं किसी और जातिकी स्वानुरूप कन्यासे विवाह कर लूँ तो इसमें भी संयम होगा और इसलिए मेरा यह कार्य जाति-प्रथाके मूल तत्त्वोंके विरुद्ध नहीं होगा। पर इस कार्यमें, जो साधारण नियमका अपवाद है, मेरा उद्देश्य इन्द्रिय-दमन है; यह सिद्ध करनेकी जिम्मेदारी मुझपर है और यह मेरे भावी आचरणसे सिद्ध होगा। परन्तु जातिके सम्पूर्ण अधिकार मुझे न मिलें तो भी मुझे सन्तुष्ट रहकर जाति-सम्बन्धी अपने कर्त्तव्योंका पालन करते रहना चाहिए।

भोजन और विवाह सम्बन्धी लाभोंके अतिरिक्त जातिप्रथासे और भी कितने ही लाभ हैं। उसमें प्राथमिक शिक्षाका साधन तैयार है। प्रत्येक जाति अपने भीतर शिक्षाकी व्यवस्था कर सकती है। संसद (पार्लमेंट) के निर्वाचनकी साधन-सामग्री भी उसमें प्रस्तुत है। प्रत्येक प्रतिष्ठित जाति अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करेगी। झगड़े

  1. १. (१८३०-१९०३); इंग्लैंडके प्रधान मन्त्री, १८८५-६, १८८६-९२ और १८९५-१९०२।