पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/३३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०५
भाषण: बम्बई प्रान्तीय सम्मेलन, अहमदाबादमें

निपटानेके लिए पंचायतें-अदालतें भी मौजूद हैं। हरएक जाति अपने-अपने झगड़ेका फैसला कर ले। यदि युद्धके लिए सेना खड़ी करनी हो तो जितनी जातियाँ हैं उतनी पल्टनें हमारे पास तैयार हैं। जाति-संस्थाकी जड़ भारतमें इतनी गहराई तक पहुँच चुकी है कि मेरे खयालसे उसे उखाड़नेकी अपेक्षा उसीमें सुधार करनेका प्रयत्न करना प्रशंसनीय जान पड़ता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि जाति-प्रथा-सम्बन्धी पूर्वोक्त बातोंको सत्य मानें तो कहना पड़ेगा कि जातियोंकी संख्यामें जितनी वृद्धि हो उतना ही अच्छा है और यदि कभी ऐसा हो तो दस-दस लोगोंकी एक जाति बन जायेगी। यह विचार ठीक नहीं है। जातिकी उत्पत्ति अथवा नाश व्यक्ति अथवा समूह-विशेषकी इच्छापर अवलम्बित नहीं है। उसकी उत्पत्ति, नाश तथा संस्कार हिन्दू समाजकी आवश्यकतानुसार हुआ है और अब भी होता है। हिन्दू-जाति प्रथा जड़ या निर्जीव प्रथा नहीं है, वह जीवित प्रथा है और अपने ही नियमके अनुसार अपना काम कर रही है। आज दुर्देववश उसमें आडम्बर, ढोंग, विषय-लम्पटता, कलह आदि दोष दीख पड़ते हैं। पर इससे लोगोंमें चरित्र-बलका अभाव-मात्र सिद्ध होता है। इससे जाति-प्रथा दोषपूर्ण सिद्ध नहीं हो सकती।

[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीनी विचारसृष्टि

२१९. भाषण: बम्बई प्रान्तीय सम्मेलन अहमदाबादमें[१]

अक्तूबर २१, १९१६

स्वागत समितिने सम्मेलनके आजके अधिवेशन के अध्यक्षपद ग्रहणके लिए [श्री मुहम्मदअली जिन्नासे] प्रार्थना करनेका सम्मान मुझे दिया है, इसके लिए मैं उसका कृतज्ञ हूँ। कुछ दिन पूर्व जब मैं दिल्लीमें था तब मैंने वहाँ दीवाने-आम और दीवान-खासमें[२] एक फारसी बैत[३]पढ़ा था जिसका अर्थ यह है कि “यदि पृथ्वीपर स्वर्ग कहीं है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।” इस बैतको पढ़कर मेरे मनमें जो भाव उत्पन्न हुआ वही भाव मेरे मनमें इस समय उत्पन्न हो रहा है। ये शब्द राज्यमद और धनमदके परिणाम थे। इस पृथ्वीपर ऐसा स्वर्ग नहीं हो सकता, क्योंकि काल-प्रवाहमें वह स्थान भी विनष्ट हो जायेगा। किन्तु हमें जो यह अवसर प्राप्त हुआ है, यदि हम इसका सदुपयोग करें तो हम निःसन्देह कभी सूक्ष्म स्वर्ग प्राप्त कर सकते हैं। आज यहाँ गर्म दल और नर्म दलके नेता मिले हैं। यह हमारे लिए कम गर्वकी बात नहीं है। भारत ऐसा देश है जो समशीतोष्ण कटिबन्धमें आता है। हम चाहते हैं कि

 
  1. १. अक्तूबर २१, २२ और २३ को श्री मुहम्मद अली जिन्नाकी अध्यक्षता में सम्पन्न।
  2. २. दिल्लीके लाल किलेमें।
  3. ३. अगर फिरदौस बर रूए जमीं अस्त।
    हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्त।-फिरदौस
१३-२०