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२२२. भाषण: वीरमगाँव चुंगी-नाकेके सम्बन्ध में [१]

अक्तूबर २३, १९१६

गांधीजीने निम्न प्रस्ताव पेश किया:

यह सम्मेलन सरकारका ध्यान उस असुविधा, कठिनाई और परेशानीकी ओर आकर्षित करता है जो काठियावाड़से ब्रिटिश प्रदेशमें आनेवाले लोगोंको जकातके कारण उठानी पड़ती है। इसमें विशेषरूपसे वीरमगांवमें रेलवे स्टेशनपर जकात वसूल करनेका जो तरीका है और उसे जिस सख्तीसे बरता जाता है उसकी ओर वह सरकारका ध्यान विशेष रूपसे खींचता है एवं सरकारसे व्यग्रतापूर्वक प्रार्थना करता है कि वह जकात लेनेकी इस प्रथाको हटा दे।[२]

इस प्रस्तावको पेश करते हुए गांधीजीने कहा:

काठियावाड़के लोगोंपर दो सरकारोंका शासन है। वे देशी राजाओंकी प्रजा हैं और देशी राजा ब्रिटिश सरकारके अधीन हैं। इस जकातका उद्देश्य मूलतः विदेशों से आनेवाले मालको चुंगी दिये बिना आनेसे रोकना है। उसको रोकनेकी व्यवस्था बन्दरगाहों में कर दी गई है; तब फिर लोगोंपर यह कर किस लिए लगाया जाना चाहिए। राजपुरकी चुंगी-चौकीके सम्बन्धमें श्रीयुत गोकुलदास पारेखने एक आवेदन दिया था। इस जकातसे स्त्रियोंको बहुत कष्ट सहना पड़ता है और अब इस कष्टको सहते सहते बारह वर्ष हो गये।

[गुजरातीसे]
काठियावाड़ टाइम्स, १-११-१९१६

२२३. पत्र: अजितप्रसादको

अहमदाबाद
नवम्बर १, १९९६

प्रिय श्री अजितप्रसाद,

मुझे खूब याद है कि मैं आपसे बम्बईमें मिला था।

मैंने पण्डित अर्जुनलालके सम्बन्धमें वर्षके प्रारम्भमें कार्रवाई की थी, किन्तु तभी मुझे मालूम हुआ कि उनके खिलाफ सरकारके पास निश्चित प्रमाण हैं। तबसे मेरा उत्साह मन्द पड़ गया है। मामलेमें आगे कदम उठानेसे पहले मैं उसपर आपसे बातचीत करना चाहता हूँ। आपका यह तर्क ठीक है कि हम बिना शर्त छोड़ देनेकी नहीं, बल्कि

  1. १. अहमदाबाद में २१, २२ और २३ अक्तूवरको हुए बम्बई प्रान्तीय राजनैतिक सम्मेलनमें।
  2. २. बॉम्बे सीक्रेट एन्स्ट्रैक्टस १९१६, पृष्ठ ९०७ से उद्धृत।