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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जायेंगे। आप स्वराज्य चाहते हैं, मैं भी स्वराज्य चाहता हूँ। पर स्वराज्य मिलनेका ढंग दूसरा है; बातें बनानेसे स्वराज्य नहीं मिलता। पहले खुद काम करो पीछे सरकारी मदद लो। सरकारी मदद पहले नहीं मिलेगी। पहले खुद आगे बढ़ेंगे तो सरकार भी हमारे पीछे आयेगी। सरकार कभी पहले स्वयं आगे नहीं बढ़ती। आप बाहर जाकर लोगोंको हिन्दी सिखायें, और उचित रूपसे काम करें। जब आप काम करेंगे तब सरकार आपकी प्रार्थना सुनेगी, नहीं तो अर्जियोंको फेंक देगी। काम बड़ा है। पर इच्छा करें तो आप स्वराज्यका भवन बना सकते हैं। प्राचीन समयका गौरव पण्डितजी (मालवीयजी) अच्छी तरह दिखा चुके हैं। अंग्रेजीका शब्द-भण्डार पहले १,००० था। अब बढ़कर कोई एक लाख हो गया। उसमें न्याय, वैद्यक आदि सब विषयोंके ग्रन्थ हैं। लोग कहते हैं हिन्दी में कुछ नहीं है और अंग्रेजीके बिना काम नहीं चलता। बाजे-बाजे समय अंग्रेजीके बिना लोगोंको बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है। यह मैं मानता हूँ। जैसे रेलवे आदिमें लोग अंग्रेजीके व्यवहारके बिना कष्ट उठाते हैं। यहांतक कि मुझ-जैसे लोगोंको हिन्दीका व्यवहार करनेके कारण धक्के भी खाने पड़ते हैं। पर काम करनेवाले इन लोगोंकी परवाह नहीं करते। अंग्रेजीसे हिन्दी कितनी ही पीछे क्यों न हो, पर हमें उसका गौरव बढ़ाना ही पड़ेगा। हमारे प्राचीन ऋषि बड़े यम-नियमसे रहते थे, बहुत बड़ा त्याग करते थे। अतः हमें कटिबद्ध होकर, स्वार्थ-त्यागपूर्वक उनका गौरव बढ़ाना चाहिए। सरकारी कौंसिलोंमें अंग्रेजी ही की पूछ है। लोग कहते हैं वाइसरॉय आदि अंग्रेजीके अतिरिक्त और कुछ नहीं समझते, इसलिए उसीका उपयोग करना आवश्यक है। पर मैं कहता हूँ कि यदि मैं बोलना जानता हूँ और मेरे बोलनेमें कोई ऐसी बात रहेगी जिससे वाइसरॉय लाभ उठा सकें तो अवश्य ही वे मेरी बातें हिन्दीमें बोलनेपर भी सुन लेंगे। उन्हें आवश्यकता होगी तो उसका अनुवाद करा लेंगे। अथवा सी० आई० डी० का कोई आदमी आकर उसकी रिपोर्ट ले जायेगा। मैं तो प्रजा ही से स्वराज्य माँगता हूँ। प्रजासे स्वराज्य मिल जायेगा तो पीछे राजासे भी मिल जायेगा। यदि आपने इतना कर लिया तो आपमें सच्ची निर्भयता आ जायेगी और आपके मनोरथ सफल होंगे।

प्रताप, १-१-१९१७
 

२३०. अध्यक्षीय भाषण: अखिल भारतीय एक-भाषा व एक-लिपि सम्मेलन, लखनऊमें

दिसम्बर २९, १९१६

मेरे प्यारे भाइयो,

पं० मदनमोहन मालवीयजीने अभी आप लोगोंको हिन्दी-भाषाके प्राचीन गौरवका वर्णन सुनाया है। परन्तु इस वर्णनसे ही राष्ट्रभाषाका प्रचार नहीं हो जायेगा। भागीरथीकी बड़ी अगाध महिमा है, ऐसा कहनेसे ही भागीरथीमें स्नानका पुण्य नहीं मिल जाता। राष्ट्रभाषाका यदि प्रचार करना है तो उसके लिए भगीरथ प्रयत्न करना होगा। आप लोग लाट साहबको या सरकारके दरबारमें जो प्रार्थनापत्र भेजते हैं तो किस भाषामें