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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

प्र०-इसका क्या कारण है?

उ०――उसमें द्वेषका निवास है।

प्र०―द्वेष तो उसमें कुछ नहीं है और यदि है भी तो वह नौकरशाही (ब्यूरोकेसी) के सिद्धान्तके साथ है।

उ०――नौकरशाहीसे ही क्यों न हो, उसमें द्वेष है। इसलिए मेरी श्रद्धा उसपर नहीं है। पर मैं यह नहीं कहता कि यह प्रयत्न अच्छा नहीं है या वह प्रयत्न विफल होगा। द्वेष करना सर्वत्र हानि ही नहीं करता । द्वेषको मनसे दूर करनेके लिए भी द्वेषके साथ द्वेष करना ही पड़ता है। परन्तु मेरा यह मार्ग नहीं है। यह भारतीय मार्ग――प्राचीन परम्परागत मार्ग――नहीं है; यह पाश्चात्य मार्ग है।

प्र०―तो आपका या हमारा भारतीय मार्ग [स्वराज्य प्राप्त करनेका] क्या है?

उ०――वह मैं अभी न बताऊँगा।

वर्णाश्रम धर्म

प्र०―चातुर्वर्ण्यके विषयमें आपकी क्या सम्मति है?

उ०――यह संस्था बहुत अच्छी है। इसने देशका बड़ा उपकार किया है। इसका रहना बहुत जरूरी है।

प्र०―हिन्दू समाजमें यदि चार ही वर्ण हैं और वे ऐसे ही रहेंगे तो अछूत जातियोंको आप किस वर्णमें गिनते हैं?

उ०――अछूत जातियोंका अस्तित्व चातुर्वर्ण्यकी ज्यादती है। चातुर्वर्ण्यने अनुचित रूपसे ज्यादती करके इन जातियोंको बहिष्कृत किया है। इनका स्थान चातुर्वर्ण्यके अन्दर ही है।

प्र०―यदि ऐसा है तो इन ‘अछूतों’को किस वर्णमें स्थान मिलना चाहिए। इस प्रश्नके उत्तरमें आपने बहुत देर तक समझाया कि समाजकी स्वाभाविक गति इनको ययाधिकार वर्णाश्रम प्रदान करेगी।

आर्यसमाजका शुद्धि आन्दोलन

प्र०―हिन्दू और मुसलमानका प्रश्न कैसे हल होगा?

उ०――यह प्रश्न पूर्णतया हल नहीं हो सकता। अन्य देशोंमें जैसे हुआ वैसे यहाँ भी होगा। हिन्दू, मुसलमान दो पक्ष रहेंगे और ऐसा होनेसे देशकी कुछ हानि न होगी।

प्र०―आर्यसमाज ‘शुद्धि’ करके मुसलमानोंको हिन्दू बना लेता है। यदि ऐसा करनेमें कोई धर्म-घात न हो और सारे मुसलमान हिन्दू बन जायेंगे ऐसी कल्पना की जाये तो ‘शुद्धि’ से यह प्रश्न क्या हल नहीं हो सकता?

उ०――परन्तु यह मार्ग अच्छा नहीं है। यह धर्म-मार्ग नहीं है। यह स्वाभाविक गति नहीं है और समस्त मुसलमानोंको हिन्दू बना लेनेकी कल्पना भी व्यर्थ है।

 
महात्मा गांधी