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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पतली लपसी बनवाना फिर शुरू कर दें। इस समय शरीरकी सामान्य स्थिति अच्छी है। यह हमें खो नहीं देनी है। हार्मोनियम आ गया होगा। साकलचन्द[१] भाई एक प्रति ढूंढ़नेकी बात कहते थे; उन्हें याद दिला देना। अनाथ आश्रमके फार्मको देख आना। मैंने उसे प्राप्त करनेका प्रयत्न फिर आरम्भ किया है। देखना यह है कि यह हमारे लिए उपयोगी होगा या नहीं।

बापूके आशीर्वाद

साथका पत्र[२] पढ़कर जमनादासको भेज देना।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६९४) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

२३४. पत्र: व्र० गो० सरैयाको

अहमदाबाद
पौष सुदी १० [जनवरी ३, १९१७][३]

मैं कल रातको लखनऊसे लौटा हूँ।[४] जो-कुछ आ पड़े उसे आपको धीरजसे सद्दन करना चाहिए और नीतिकी रक्षा करते हुए मृत्यु भी स्वीकार करनी चाहिए। मैं इससे अधिक कोई सान्त्वना नहीं दे सकता।

मोहनदास गांधी

भाई व्रजलाल गोविन्दलाल सरैया

राजा मेहताकी पोल
तोडाके पास

अहमदाबाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीमें लिखित मूल पोस्टकार्ड (सी० डब्ल्यू० २८२०) से।

सौजन्य: विनयचन्द्र गोविन्दलाल सरैया

 
  1. १. साकलचन्द शाह, पहले अहमदाबादके गुजरात कॉलेजमें भौतिकीके प्राध्यापक थे; बादमें उन्होंने राष्ट्रीय विद्यापीठ, गुजरातका कार्यभार सँभाला।
  2. २. उपलब्ध नहीं है।
  3. ३. डाकखानेकी मुहरसे।
  4. ४. दिसम्बर, १९१६ के कांग्रेस-अधिवेशनमें भाग लेनेके बाद।