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२३५. पत्र: एस्थर फैरिंगको

अहमदाबाद
जनवरी ११, १९१७

प्रिय एस्थर,[१]

तुम्हारा बम्बईसे लिखा संक्षिप्त पत्र पाकर मुझे प्रसन्नता हुई थी। हम लोगोंको तुम दोनोंकी बड़ी याद आती है। तुम लोग हमारे लिए मेहमान नहीं परिवारके सदस्य बन गये थे। आशा है कुमारी पीटर्सन[२] पुनः पूर्ण स्वस्थ हो गई होंगी। मैंने तुम्हारे कुछ पत्र कल पते बदलकर भेज दिये थे, और कुछ आज भेज रहा हूँ।

तुम दोनोंको यथायोग्य।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
माइ डियर चाइल्ड

२३६. पत्र: कल्याणजी मेहताको

अहमदाबाद
पौष बदी ४ [जनवरी १२, १९१७][३]

भाईश्री कल्याणजी,[४]

आप अभी सूरतमें ही होंगे, ऐसा मानकर यह पत्र लिख रहा हूँ। वीरमगाँवकी चुंगी-चौकीका प्रश्न आपने जान-बूझकर तो नहीं छोड़ दिया है? और तो सब ठीक जान पड़ता है। शिक्षण मातृभाषाके माध्यमसे देनेका प्रस्ताव भी पास किया जा सकता है।

 
  1. १. तथा २. कुमारी एस्थर फैरिंग तथा कुमारी मेरी पीटर्सन दक्षिण भारतमें डेनिश मिशनरी सोसाइटीके अमलेकी सदस्या थीं। वे अपने शैक्षणिक कार्यकी तैयारीके लिए गांधीजीके साबरमती स्थित आश्रममें आई थीं। बापू एस्थरको बेटो-जैसा मानने लगे थे; देखिए “पत्र : एस्थर फैरिंगको”, १५-४-१९१७ तथा १७-४-१९१७,।
  2. २.डाकखानेकी मुहरसे।
  3. २.डाकखानेकी मुहरसे।
  4. ३. सूरत जिलेके एक कांग्रेसी नेता।