इस समय मेरा अहमदाबाद छोड़ना बहुत कठिन है। मैं आकर करूँगा भी क्या? मैं तो चाहता हूँ कि मुझे मुक्त कर दीजिए।
मोहनदास गांधीके वंदेमातरम्
प्रस्तावकी नकल वापस भेज रहा हूँ।
पटेल बन्धु कार्यालय
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीमें लिखित मूल पोस्टकार्ड (जी० एन० २६६३) की फोटो-नकलसे।
२३७. वक्तव्य: लायनेल कटिसके पत्रके सम्बन्धमें
[जनवरी १४, १९१७ के पूर्व][१]
‘न्यू इंडिया’ लिखता है: यह सिद्ध हो गया है कि लायनेल कर्टिस[२]द्वारा ‘राउंड टेबल’के मन्त्रीको लिखे गये पत्रकी[३]खोज श्री गांधीकी थी। अहमदाबादके एक संवाददाताने बम्बईके ‘हिन्दुस्तान’ में श्री कटिसके गोपनीय पत्रके बारेमें गांधीजीका एक विस्तृत स्पष्टीकरण छापा है जो उन्होंने अहमदाबादमें अपने आश्रममें दिया था। इसमें श्री गांधी कहते हैं:
यह आगरेकी बात है; वह पत्र संयोगसे वहाँ मेरे हाथ लग गया। यह सरकारी छापेखानेमें मुद्रित किया गया था और इसपर ‘गोपनीय’ लिखा हुआ था। किन्तु यह छापेखानेके किसी कर्मचारीकी गलतीसे एक पुस्तकके साथ मुझतक आ गया। मैंने जैसे ही देखा, मैं चौंक पड़ा और उस खतरेको देखकर जो देशके सामने खड़ा था, मैंने इस षड्यंत्रका भंडाफोड़ किसी-न-किसी प्रकार कांग्रेसके सामने करनेका निश्चय किया। और मैंने इसे श्री हॉनिमैनको[४] दे दिया। किन्तु साथ ही मैंने श्री कर्टिसको २४ घंटेका समय दिये जानेका सुझाव दिया ताकि वे इस बारेमें इस अवधिके भीतर जैसा ठीक समझें कहकर अपना स्पष्टीकरण दें। किन्तु दूसरे लोगोंका विचार था कि उनका कर्त्तव्य उसे तत्काल प्रकाशित कर देना है और इस प्रकारका नोटिस देनेकी आवश्यकता नहीं
- ↑ १. यह १४-१-१९१७ के गुजराती में भी प्रकाशित हुआ था।
- ↑ २. लायनेल कर्टिस; जोहानिसबर्गके टाउन क्लार्क, १९०२-३; ट्रान्सवालमें नागरिक मामलोंके सहायक उपनिवेश सचिव; १९०३-६, सदस्य ट्रान्सवाल विधान परिषद्; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ १०।
- ↑ ३. इस पत्रपर १३ दिसम्बर १९१६ की तारीख थी और यह २७-१२-१९१६ के न्यू इंडिया में उद्धृत किया गया। पत्रमें “भारतको उपनिवेशोंके नियंत्रण में रखने” का प्रस्ताव था। (इंडिया इन द इयर्स, १९१७-१९१८)
- ↑ ४. बी० जी० हॉर्निमैन, सम्पादक, बॉम्बे क्रॉनिकल।