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२५०. पत्र: सुन्दरम्को

दिल्ली
फरवरी १७, १९१७

प्रिय सुन्दरम्,

ईश्वर करें तुम्हारे मनोरथ पूरे हों।

हृदयसे तुम्हरा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्रकी (जी० एन० ३१७४) फोटो-नकलसे।

२५१. मगनलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश[१]

सोमवार [फरवरी १९, १९१७ से पूर्व][२]

...देना और उसके कारण अधिक लेना पड़े तो दूध लेना।

शिक्षाके सम्बन्धमें तुमने जो-कुछ लिखा है, वह ठीक है। तुम मुझे इस सम्बन्धमें परेशान करते रहो, यह वांछनीय है। इससे में अधिक जागरूक रहूँगा। मैं तुम्हारे कष्ट देनेका अर्थ बुरा नहीं लगाऊँगा और न उससे उकताऊँगा ही।

डॉ० हरिप्रसादसे कहना कि ऐसा लगता है, मैं गोखलेकी पुण्य-तिथिके सम्बन्धमें लेख साथ ही ला सकूँगा। वे ऐसी व्यवस्था रखें जिससे वह सोमवारको छप सके। सभामें ही जितना चन्दा हो सके, उतना कर लें।

विद्यालयकी योजनामें मराठी है,[३] इसलिए हमें भी मराठी आरम्भ करनी चाहिए, यह तुम ठीक लिखते हो। मैं जिस दिन गोधरासे लौटूँ, उसी दिन इस सम्बन्धमें और शिक्षा सम्बन्धी जिन अन्य विषयोंपर विचार करना उचित लगे, उनके सम्बन्धमें चर्चा कर लेना। ऐसे विषयोंको लिख रखना। भाई पोपटलाल और फूलचन्दसे शिक्षाका कार्य कराना तुम्हारा काम है।

आशा है, तुमने हिसाबका काम पूरा कर लिया होगा और फूलचन्दको समझा दिया होगा।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७०९) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

  1. १. इस पत्रके पहले दो पृष्ठ उपलब्ध नहीं है।
  2. २. गांधीजी इसी दिन गोधरा पहुँचे थे और उन्होंने गोखलेकी बरसोंके उपलक्ष्य में की गई सभाकी अध्यक्षता की थी।
  3. ३. देखिए “राष्ट्रीय गुजराती शाला”, १८-१-१९१७ के बाद।