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२९४. पत्र: डॉक्टर एच० एस० देवको

बेतिया
चम्पारन
अप्रैल २९ [१९१७][१]

प्रिय डॉक्टर देव,

आपका भूगोल-सम्बन्धी ज्ञान गलत है। यह आसाम नहीं है, यह तो उत्तर बिहार है। यह राजा जनककी भूमि है जहाँ विश्वामित्र उन दो किशोरों, राम और लक्ष्मणको अपने साथ लेकर आये थे। इस भूखण्डमें प्रकृतिने जितना दिल खोलकर दिया है, मनुष्यने अपनी शक्ति-भर उतना ही लूटा है। यहाँ हालत इतनी खराब है कि मैं जगहसे एक दिनके लिए भी बाहर नहीं जा सकता। मैंने अपने सारे कार्यक्रम रद कर दिये हैं। मेरी इच्छा तो जरूर है कि नासिक आकर आपसे मिलूं परन्तु ऐसा होना दुश्वार दीखता है।

जो लोग हमारे पास आ रहे हैं उनके बगान यथासम्भव शीघ्रताके साथ लिये जा रहे हैं। कुछ ही दिनोंमें मेरे पास, रिपोर्ट लिखनेके लिए कुछ-न-कुछ मसाला जुट जायेगा। श्री शास्त्रियरको में यहाँके सब समाचार अविलम्ब भेजता रहता हूँ।

यद्यपि अभी में कारावासमें नहीं हूँ तथापि मैं यह अपेक्षा करूँगा कि श्री गोखलेके भाषणोंके अनुवादके बारेमें जो कार्यक्रम बन चुका है उसे आप ही पूरा कर दें।

हृदयसे आपका
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७९७) की फोटो-नकलसे।

२९५. पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको

मोतीहारी
मई २, १९१७

प्रिय श्री हेकॉक,

मैं कल रातको मोतीहारी आया। यह तो शायद आपको मालूम होगा कि में आज १०-४५ पर बागान मालिकोंसे मिल रहा हूँ। क्या आप चाहेंगे कि मैं आपसे भी मिल लूँ? यदि ऐसा हो तो कृपया सूचित कीजिए।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र ( नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया) से; सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० ५८, पृ० ११० से भी।{smallrefs}}

  1. १. चम्पारनकी भौगोलिक स्थिति उल्लेखसे लगता है कि गांधीजीने यह पत्र वहाँ पहली बार जानेके बाद लिखा होगा।