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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरी इच्छा है कि आप प्रो० शाहसे मिलकर उस कार्यको तुरन्त आरम्भ कर दें। भाई सदाशिवको लिख दें कि शायद उनकी जरूरत पड़ सकती है। जरूरत पड़नेपर उन्हें बुला लूँगा। क्या वे सपरिवार आनेके लिए तैयार हैं? कमसे-कम छः मास तो देने ही पड़ेंगे। अधिक समय भी लग सकता है।

यदि शास्त्रीवाली जमीन अन्यथा असुविधाजनक न हो और उसमें पानी ठीक हो तो उसे अविलम्ब खरीद लेना चाहिए। क्या आपको ऐसा लगता है कि मकान बनने तक वहाँ तम्बू लगाये जा सकते हैं या झोंपड़े बनाये जा सकते हैं? जमीनके सम्बन्धमें विश्लेषणकर्त्ताकी रिपोर्ट सन्तोषजनक न हो तो भी मुझे उसकी चिन्ता नहीं। पानी अच्छा होना चाहिए। हमें राष्ट्रीय शालामें फिलहाल तो १२ से २० तक लड़के चाहिए। यदि वे अच्छे परिवारोंके हों तो अच्छा, न हों तो भी ठीक। यदि शास्त्रीवाली जमीनमें जाना पड़े तो पासके गाँवोंके लड़के भी बुलाये जा सकते हैं। किन्तु जबतक अहमदाबाद नगरके लड़के आ सकें तबतक इस प्रयोगमें गाँवके लड़कोंको न लाना ज्यादा ठीक होगा। फिर भी इस बातपर कोई आग्रह रखनेकी जरूरत नहीं। जो लड़के मिलेंगे उन्हींसे काम चलेगा।

शिक्षकोंमें गुण होगा तो शिक्षणका सहज सुलभ लाभ तो सबको मिलेगा ही। वे ‘रामायण’ की कथाएँ सुनायेंगे तो उन्हें सभी यथाशक्ति समझेंगे। खेतीकी शिक्षा भी सब समान रूपसे लेंगे। लेकिन आध्यात्मिक चेतनाके लिए संस्कार होने चाहिए। हम कैसे जानें कि ये संस्कार शहरमें मिलेंगे या गाँवमें। यह पत्र प्रो० शाहको पढ़वा देना और उनसे मेरी ओरसे प्रार्थना करना कि वे इस काममें पूरी तरह जुट जायें। अवकाश मिलनेपर उन्हें मैं पत्र लिखूँगा।

भाई कृपलानी मुजफ्फरपुरमें हैं। उन्होंने मुझसे पूछा था कि उन्हें अब क्या करना चाहिए। मैंने उन्हें यह सलाह दी है[१] कि चूंकि वे यहाँ हैं, इसलिए यहींके काममें भाग लें। उसके बाद उनका कोई उत्तर नहीं आया है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

चिन्तामणि शास्त्रीके सम्बन्धमें [उन्हें ] अभय कर देना कि जबतक सिन्धको उनकी आवश्यकता है तबतक हम उन्हें यहाँ नहीं बुलायेंगे।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्रकी नकल (सी० डब्ल्यू० ५७१२) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी

 
  1. १. देखिए “पत्र: जे० बी० कृपलानीको”, १७-४-१९१७।