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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रतिनिधि बड़ी सज्जनतासे पेश आये, लेकिन वे अपनी बातका आग्रह छोड़नेके लिए तैयार नहीं थे। उनका दावा था कि उन्होंने हमेशा किसानोंके उपकारकोंका-सा व्यवहार किया है और उन्हें साहूकारोंके लोभका शिकार होनेसे बचाया है। जाहिर है कि उन्होंने अपना पक्ष पेश करनेमें अतिशयोक्ति की। स्थानीय अधिकारियोंके साथ श्री गांधीकी कई मुलाकातें हो चुकी हैं। हमारी बात सुनने और समझनेकी वृत्ति गोरे जमींदारोंकी बजाय स्थानीय अधिकारियोंमें ज्यादा है और वे निश्चय ही सन्तोषकारक समझौतेकी इच्छा भी रखते हैं। अधिकारियोंने अपने इस मतको भी कभी छिपाया नहीं है कि हम यहाँ जो कार्य कर रहे हैं वे उसे पसन्द नहीं करते। सरकारकी सूचना थी कि श्री गांधीको हर किस्मकी सुविधा दी जानी चाहिए किन्तु उनमें से कुछ लोगोंने इसका पालन बहुत अनिच्छासे ही किया है। फलतः उनसे जानकारी प्राप्त करना हमेशा बहुत आसान नहीं रहा है। ऊपर जिन सहायकोंके नाम आये हैं उनकी उपस्थितिके खिलाफ उन्होंने अपनी नापसन्दगी और भी जोरसे व्यक्त की है। बेतियाके सब-डिवीजनल ऑफिसर (उपमंडल-अधिकारी) ने तो कई बार यहाँ तक कहा [१] है कि हमारी जांचके कारण उसे अपने इलाकेमें किसी भी दिन आगजनी आदिके उपद्रव होनेकी आशंका है। वह कहता है कि काश्तकार पहलेसे ज्यादा ढीठ हो गये हैं और उन्होंने हमारी जाँचके बारेमें जरूरतसे अधिक आशाएँ बाँध रखी हैं। उसने सरकारसे कहा है कि अगर जाँचका काम बन्द नहीं कराया जाता तो वह अपने जिलेमें शान्ति बनाये रखनेके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। कुछ गोरे जमींदार सरकारके पास यह शिकायत करने राँची पहुँचे थे कि अगर जाँच जारी रहती है तो उन्हें अपनी जानका खतरा है। इसीलिए इस महीनेकी १० तारीखको श्री गांधीको माननीय श्री मॉडसे मिलनेके लिए बाँकीपुर बुलाया गया था।

एक औद्योगिक प्रतिष्ठानका मुख्य कोठीसे दूर बना हुआ एक हिस्सा जला दिया गया है।[२] गोरे जमींदार इस घटनासे घबराये और उन्होंने इसे हमारे जाँच-कार्यका परिणाम बताया। किन्तु जाँचका इस घटनासे कोई सम्बन्ध नहीं है।

श्री मॉडने सुझाव दिया[३] कि जाँच अब बिलकुल बन्द कर दी जाये, यही ज्यादा उपयोगी होगा और श्री गांधी अपनी रिपोर्ट सरकारको पेश कर दें; और यदि जाँच बन्द करना सम्भव नहीं है तो श्री गांधी उस जिलेसे अपने वकील-मित्रोंको हटा लें। श्री गांधीने कहा कि जाँच पूरी तरह बंद नहीं की जा सकती लेकिन वे जाँचके इस कार्य में उस मंजिल तक पहुँच गये हैं जहाँ वे उसके आधारपर प्रारंभिक निर्णय पेश कर सकते हैं। वकील-मित्रोंके बारेमें उन्होंने कहा कि वे सब शान्त स्वभावके और विश्वसनीय लोग हैं, उन्होंने इस कार्यमें मेरी बहुत ज्यादा सहायता की है और मैं उनकी सहायताका त्याग करनेकी बात सोच ही नहीं सकता; वह अशोभन होगा। श्री मॉडकी बातचीतका ढंग मैत्रीपूर्ण था और उससे समझौता करनेकी इच्छा प्रगट

 
  1. १. देखिए “पत्र: डब्ल्यू० एच० लुईको”, २८-४-१९१७।
  2. २. देखिए “पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकोंकको”, १४-५-१९१७।
  3. ३. देखिए परिशिष्ट ५।