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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

अगर सरकार गाँवोंमें उनकी उपस्थितिको ठीक मानती है तो उनका काम आसान होगा, और अगर वह उसे नापसन्द करती है तो मुश्किल होगा। लेकिन जो भी हो हमें वैसा करना है। गाँवों में रहते हुए वे गाँवोंके लड़के-लड़कियोंको पढ़ायेंगे और ग्रामवासियोंको प्राथमिक सफाई सिखायेंगे यहाँ यह कह दिया जाये कि यहाँकी ग्राम-वासी जनता भारतकी लगभग सबसे ज्यादा पिछड़ी हुई और अपढ़ जनता है। शिक्षाका स्तर इस जिलेमें सबसे नीचा है। सफाईकी हालत सबसे खराब है। बच्चोंको भरपेट खाना नहीं मिलता जिससे वे बीमार-से नजर आते हैं। और वयस्क लोग किसी-न-किसी रोगसे पीड़ित हैं। अनेक लोगोंको गलगण्ड नामक गलेकी एक बीमारी है। उनमें कोई शारीरिक या नैतिक सत्त्व नहीं रह गया है। यहाँ तक कि――देखकर दुःख होता हैं――राजपूत भी भयसे पीड़ित हैं। मौजूदा स्वयंसेवक ऊपर बताया हुआ काम करनेके लिए प्रतिज्ञाबद्ध हैं। ऐसी अपेक्षा नहीं है कि बिहार अभी वैसे और भी कई स्वयंसेवक देगा जैसे हम चाहते हैं। स्वयंसेवकोंके चुनावमें बहुत सावधानी बरती जा रही है। हमें बहुत सुशिक्षित, जिम्मेदार और शान्त गम्भीर स्वभाववाले लोग चाहिए । जिनके पास ये टिप्पणियाँ पहुँचें उनसे हम अपेक्षा करते हैं कि वे ऐसे स्वयंसेवक प्राप्त करनेमें अपने प्रभावका उपयोग करेंगे और उनसे हमारे पास अपने नाम भेजनेको कहेंगे। करीब सौ स्वयंसेवकोंकी आवश्यकता है। जिन्हें अपने परिवारोंके लिए मददकी जरूरत है, उन्हें हम अपनी शक्तिके अनुसार मामूली मदद भी देंगे।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६३५२) से।

३०३. पत्र: डब्ल्यू० मॉडको

बेतिया
मई १४, १९१७

प्रिय श्री मॉड,

जैसा कि मैंने वादा किया था आज अपना प्रतिवेदन[१] मैंने मुख्य सचिव (चीफ सेक्रेटरी) को भेज दिया है। मैं ऐसी आशा किये हूँ कि उसपर तुरन्त ही विचार किया जायेगा।

मैं यथासंभव शीघ्र ही अपने वचनके अनुसार जाँचकी पद्धति बदलनेकी व्यवस्था भी कर रहा हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० ७३, पृष्ठ १३१।
  1. १. देखिए “प्रतिवेदन: चम्पारनके किसानोंकी हालतके बारेमें”, १३-५-१९१७।