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३०९. पत्र: छगनलाल गांधीको

बेतिया
वैशाख बदी ११, मई १७, १९१७

चि० छगनलाल,

बनारसके भाषणक[१] संशोधित प्रति भेजनेमें कोई हानि नहीं है।

अब जमनादासके पत्र भेजनेकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह अब मुझे लिखने लग गया है। तुमने इस बार जो पत्र भेजा है, उसे नारणदासको भेजे देता हूँ। ऐसा जान पड़ता है, उसने उसे नहीं देखा। उसके पत्रमें कोई खास बात हो तो मुझे लिखना।

यहाँ पगड़ी भेजनेकी जरूरत नहीं है। जो है, उसीसे काम चला लेता हूँ। धोतियाँ तैयार न हुई हों, तो करा लेना। लगता है उनकी जरूरत पड़ेगी। तुमने उमरेठको और सूत दे दिया होगा। उस कामको छोड़ना नहीं है। मेरी राय है कि सैयद मुहम्मद और दूसरे भाई, जिन शर्तोंपर लालजी आये है उन्हीं शर्तों पर आयें, तो उन्हें रख लिया जाये। मुझे लगता है, हमें काफी कपड़ा बनवाना चाहिए; किन्तु आंटी बनाकर देनेकी जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेनी है। वे अपने लड़के साथ लायें। यदि गरीब माँ-बाप अपने लड़कोंको काम सीखने भेजें तो उन्हें मजूरी दी जाये। उनसे काम थोड़े समय ही लिया जाये; शेष समय उन्हें पढ़ाया जाये। संक्षेपमें, मुझे एक छोटा कारखाना खोलनेकी जरूरत महसूस होती है। इसी तरह धीरे-धीरे कुछ सूझ जायेगा। इस बारेमें यह खयाल भी आता है कि यदि हमें कुछ ईमानदार वैतनिक कर्मचारी मिल जायें, तो उनको रखना ठीक होगा। उनसे घरेलू काम लिया जा सकता है और इस समय हममें जो लोग घरेलू काममें लगे हैं उन्हें अवकाश मिल सकता है। यह विचार मेरे मनमें बराबर आया करता है। किन्तु इसे काफी ठोक-बजाकर देख लेना है। इस दृष्टिसे यदि कोई प्रौढ़ वयकी विधवा बहन मिल जाये तो उसको रख लेना शायद ठीक होगा। अवकाशके समयमें ऐसा ही सोचता रहता हूँ। किन्तु चूँकि मैं [तुमसे] इतनी दूर बैठा हुआ यह सब सोचता हूँ, इसलिए इन विचारोंको बहुत महत्त्व देनेकी आवश्यकता नहीं है। यदि इनपर अमल करो तो अपनी जिम्मेदारीपर करो। इस सम्बन्ध में विचार करते समय भाई ब्रजलालकी पूरी सहायता लेना। चूँकि जिम्मेदारी उनकी रहती है, इसलिए इस सम्बन्धमें कुछ विशेष वे ही कह सकेंगे। रहती है, इसलिए इस सम्बन्धमें कुछ विशेष वे ही कह सकेंगे।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७०४) से।

सौजन्य: छगनलाल गांधी

 
  1. १. देखिए “भाषण: वनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमें”, ६-२-१९१६।