पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/४४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०९
पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको

कर सकता हूँ। अतः जिसे वे अपना अधिकार समझते रहे हैं, उसे बनाये रखनेके उनके न्यायसम्मत प्रयत्नोंका बुरा नहीं माना जा सकता। किन्तु बेलवा और ढोकरहा गाँवों में जो-कुछ होने की खबर मिली है उसे न्यायसम्मत प्रयत्नोंके वर्गमें नहीं रखा जा सकता।

यह सभी जानते हैं कि आम तौरपर बागान-मालिकोंकी इच्छा है कि मैं और मेरे मित्र अपना काम जारी न रखें। मैं सिर्फ यही कह सकता हूँ कि जबतक सरकार हमें बल प्रयोग करके न रोके, अथवा जबतक इस बातका पक्का आश्वासन न दे कि रैयतकी जानी-मानी या जो सिद्ध की जा सकें ऐसी शिकायतें सदाके लिए दूर कर दी जायेंगी तबतक कोई शक्ति हमें इस जिलेसे नहीं हटा सकती। मैंने रैयतकी जितनी कुछ दशा देखी है उससे मुझे विश्वास हो गया है कि यदि इस समय हम इस कामसे हटते हैं, तो हम मनुष्य और ईश्वर, दोनोंकी निगाहोंमें अपराधी माने जायेंगे; और सबसे बड़ी बात तो यह है कि हम खुद अपनेको कभी माफ नहीं कर पायेंगे।

मण्डलीका उद्देश्य सर्वथा शान्तिपूर्ण है। मैं बराबर यह कहता हूँ कि बागान-मालिकोंके प्रति मेरे हृदयमें कोई दुर्भाव नहीं है। मुझसे कहा गया है कि यह बात मेरे बारेमें तो ठीक है, लेकिन मेरे साथियोंके बारेमें ठीक नहीं है। उनके मनमें अंग्रेज-विरोधी उग्र भावना है, और वे इस कार्यको अंग्रेज-विरोधी आन्दोलन समझते हैं। मैं तो यही कह सकता हूँ कि मेरे साथी किसी ऐसी भावनासे जितने मुक्त हैं उतना शायद ही कोई व्यक्ति-समूह हो। मैं ऐसे किसी रहस्योद्घाटनकी आशा नहीं कर रहा था। मैं किसी हद तक उनके मन में दुर्भावना है, ऐसा सुननेको तैयार था। उसे मैं क्षम्य मानता। जो परिस्थितियाँ मुझे अत्यन्त असह्य प्रतीत हुई हैं, उनमें स्वयं मेरा मन दुर्भावनाग्रस्त नहीं हुआ, ऐसा मैं नहीं कह सकता। किन्तु यदि मैं देखता कि मण्डलीके कार्य सम्पादनमें मेरे किसी साथीने दुर्भावनासे काम लिया तो मैं अपनेको उनसे अलग कर लेता और आग्रह करता कि वे मण्डलीसे अलग हो जायें। मगर इसके साथ ही रैयतकी गर्दन तोड़नेवाला जो जुआ उनके कन्धोंपर रखा है उससे उन्हें मुक्त करानेका हमारा संकल्प भी अटल है।

स्वाभाविक रूपसे प्रश्न उठता है, क्या सरकार उन्हें उससे मुक्त नहीं कर सकती? मेरा कहना है कि इस प्रकारके मामलोंमें मण्डली जैसी सहायता कर रही है वैसी सहायताके बिना सरकार कुछ नहीं कर सकती। सरकारी यन्त्रकी बनावट ही ऐसी है कि वह धीमी गतिसे चलता है। वह घूमता है, अवश्य घूमता है, किन्तु कमसे कम अवरोधकी दिशामें। मेरे जैसे सुधारकोंके प्रति, जिनके पास वर्तमान सुधार-कार्य करनेके अलावा कोई और काम नहीं है, असहिष्णु हो उठना, अथवा उनकी सहायताके बिना भी काम कर सकनेकी अपनी सामर्थ्यपर गलत विश्वास करना शायद सरकारकी गलती होगी। मुझे आशा है कि इस मामलेमें उक्त दोनों बातोंमें से एक भी घटित नहीं होती, और जो शिकायतें मैं पहले ही सरकारके सामने रख चुका हूँ, और जिन्हें स्वीकार भी किया जाता है, वे कारगर ढंगसे दूर की जायेंगी। तब बागान-मालिकोंको उस मण्डलीके प्रति, जिसके नेतृत्वका भार मुझपर है, भय या शंका रखनेका कोई कारण नहीं रह जायेगा, और वे सहर्ष स्वयंसेवकोंकी सहायता स्वीकार करेंगे। ये स्वयंसेवक गाँववालों में शिक्षा-प्रसार और सफाईका काम करेंगे और बागान-मालिकों और रैयतके बीच कड़ीका काम अदा करेंगे।