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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

कृपया पत्रकी लम्बाई और तर्कपूर्ण शैलीके लिए मुझे क्षमा करें। अपनी सच्ची स्थिति आपके सामने रखनेके लिए इनके बगैर काम नहीं चल सकता था। जिन दो मामलोंके कारण मुझे यह पत्र लिखना पड़ा है, उनमें आपसे कोई कानुनी राहत माँगनेका मेरा मंशा नहीं है। किन्तु मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि कोठियों तथा मेरे और मेरे साथियोंके बीच अबतक जो मैत्रीपूर्ण भावना रही है, उसे बनाये रखनेके लिए आप अपने प्रशासकीय प्रभावका जितना प्रयोग कर सकते हों, अवश्य करें।

मेरा मंशा ऐसा कहनेका नहीं है कि आगकी घटनाके लिए सम्बन्धित कोठियाँ जिम्मेदार हैं। ऐसा सन्देह तो रैयतके कुछ लोगोंको है। मैंने आगकी दोनों घटनाओंके सिलसिले में रैयतके सैकड़ों लोगोंसे बात की है। उनका कहना है आगके लिए रैयत जिम्मेदार नहीं है और न मण्डलीका उनसे कोई सम्बन्ध है। हम इस आरोप-खण्डनको खुले मनसे स्वीकार करते हैं क्योंकि हम रैयतको बराबर समझाते रहे हैं कि इस मण्डली- का उद्देश्य हिंसात्मक अथवा प्रतिशोध लेनेका नहीं है, और यदि कोई वैसा काम करेंगे तो उससे राहत मिलनेमें विलम्ब ही होगा। किन्तु यदि कोठियाँ आगकी घटनाओंके लिए जिम्मेदार न मानी जायें, तो उन्हें भी आगकी घटनाओं और मण्डलीके बीच कोई सम्बन्ध स्थापित करनेकी कोशिश नहीं करनी चाहिए। आगकी घटनाएँ इससे पहले भी हो चुकी हैं, और मण्डली हो या न हो, आगे भी हमेशा होती रहेंगी। जबतक बिलकुल स्पष्ट प्रमाण न हों तबतक दोनों पक्षोंको एक-दूसरेपर दोषारोपण करनेसे बचना चाहिए।

बागान-मालिकोंकी जान खतरेमें है, इस ढंगकी भी एक बात कही जाती है। इस प्रकारकी चर्चामें कोई गम्भीरता नहीं हो सकती। फिर भी जितने सुरक्षित वे अब हैं, मण्डली उन्हें उससे ज्यादा सुरक्षा नहीं दे सकती। मण्डलीका ध्येय और सिद्धान्त ऐसे किसी भी कार्यके सर्वथा विरुद्ध है। इसका उद्देश्य स्वयं कष्ट-सहन करके राहत प्राप्त करना है, किसी कल्पित या वास्तविक अपराधीके प्रति हिंसा करके कदापि नहीं। रैयतको दिन-रात यही पाठ पढ़ाया गया है।

अन्तमें, मुझे लगता है कि डराने-धमकानेके बारेमें जो बयान यहाँ संलग्न किये गये हैं, उनकी सचाईके काफी प्रमाण हैं। वर्तमान प्रणालीको बरकरार रखनेका बागान-मालिकोंका जो स्वार्थ है वह ऐसे तरीकोंसे सिद्ध नहीं होगा, और डराने-धमकानेसे तो चारों ओर और संकट ही फैलेगा।

मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि जो परिस्थितियाँ आपके सामने मैंने रखी हैं उनमें आप जो सहायता दे सकते हों, दें।

मैं इस पत्रकी एक प्रति श्री लुईको भेज रहा हूँ। {{|आपका सच्चा,
मो० क० गांधी}}

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया) से; सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० ८४, पृष्ठ १४४-४६ से भी।