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३१४. चम्पारनकी स्थितिके सम्बन्धमें टिप्पणी―३

(बेतिया, २० मई, १९१७)

बेतिया,
मई २१[१], १९१९

गोपनीय

चम्पारनकी स्थितिके बारेमें यह तीसरी टिप्पणी है।

यह स्पष्ट है कि बागान-मालिकोंकी कोशिश हमारी मण्डली [मिशन] को अवैध घोषित कराने या बदनाम करनेकी है। अपना मतलब पूरा करनेके लिए उनका पहला तरीका सरकारको यह बताना था कि चम्पारनमें मण्डलीकी उपस्थितिके कारण उनके प्राणोंको खतरा है। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि बागान-मालिकों और रैयतके सम्बन्धोंकी जाँच करनेके लिए एक कमीशन नियुक्त किया जाना चाहिए।

उनके प्राणोंको अगर पहले कोई खतरा नहीं था तो अब भी नहीं है। रैयत इतनी दबी हुई और सभीत है कि यदि वह चाहे, तो भी ऐसी कोई हरकत नहीं करेगी; इसके अलावा, मण्डलीका सिद्धान्त तो यह है कि हर सम्भावित परिस्थितियोंमें हिंसाका सर्वथा अभाव होना चाहिए।

अपने आगमनके तुरन्त बाद वाइसरॉयको लिखे गये अपने पत्रमें[२] श्री गांधीने स्वयं उस समय, जब वे गिरफ्तार किये जानेवाल थे, एक कमीशन नियुक्त करनेका सुझाव दिया था। किन्तु उसके बादसे अबतक जो बातें प्रकाशमें आई हैं, उनसे लगता है कि कमीशनकी नियुक्ति होनेसे राहत मिलनेमें विलम्ब ही होगा। नेतागण सही स्थितिसे परिचित होनेके बाद, जिसकी कुछ झलक उन्होंने सरकारको भेजे गये अपने प्रतिवेदनमें पहले ही दे दी है, अब किसी ऐसी सम्भावनाकी कल्पना भी नहीं कर सकते जिसके कारण ये शिकायतें अनिश्चित काल तक जारी रह सकें। जितनी भी गम्भीर शिकायतें हैं उनमें से अधिकांशको स्वीकार किया जाता है। वे सरकारकी कमजोरीके कारण ही दूर नहीं हो सकी हैं। राहत देनेके लिए जो कदम जरूरी हैं उन्हें दृढ़तापूर्वक उठानेसे

वह डरती रही है। उसने बागान मालिकोंकी सद्वृत्तिके ऊपर जरूरतसेज्या दा भरोसा किया है; और बागान-मालिकोंने कानूनों और सरकारी निर्देशों, दोनोंकी ही उपेक्षा की है। ऐसी स्थितिका सामना कोई भी कमीशन नहीं कर सकता। केवल सरकार ही ऐसा कर सकती है, बशर्ते कि वह ऐसा करना चाहे, या उसे वैसा करनेपर मजबूर किया जाये। यह स्पष्ट है कि बागान-मालिक एक ऐसा कमीशन नियुक्त कराना चाहते हैं कि मण्डलीका स्थान स्वयं ग्रहण करके उसकी गतिविधियोंको बन्द करा दें। इस पुण्य कार्यमें लगे हुए कार्य-कर्तागण अपनी अन्तरात्माको चोट पहुँचाये बिना अपना काम किसी कमीशनके जिम्मे

  1. १. ऐसा प्रतीत होता है कि गांधीजीने इस टिप्पणीको २० तारीखको लिखना आरम्भ किया और २१ तारीखको उसे समाप्त किया।
  2. . २. देखिए “पत्र: वाइसरॉय के निजी सचिवको”, १६-४-१९१७।