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चम्पारन समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि समिति २५ प्रतिशत तक की छूट देगी तो वे उसे स्वीकार कर लेंगे; किन्तु यदि वह २५ प्रतिशतसे अधिक छूटकी सिफारिश करेगी तो वे उसका विरोध करेंगे। स्वीकार भी हम यही मानकर करेंगे कि समितिका निर्णय सभीपर अनिवार्य रूपसे लागू होगा, और समझौतेसे हटकर कोई मुकदमेबाजी नहीं की जायेगी। सभापति महोदयने कहा कि मैं समझता हूँ कि कोई समझौता बाध्यकारी हो, इसके लिए कानून बनना आवश्यक है। यह समितिका काम है कि वह प्रयत्न करके छूटके प्रतिशतपर सहमति प्राप्त करे। उन्होंने कहा कि शरहबेशीके इन सभी मामलोंमें लगानको सैटिलमेंट अदालतोंने उचित और न्यायसंगत ठहराया था। इसलिए समितिको आश्वस्त होना चाहिए कि शरहवेशीमें प्रस्तावित छूट देनेके बाद जो लगान निर्धारित किया जायेगा वह रैयतके लिए और भी अधिक न्याय्य होगा। विवादग्रस्त सभी मामलोंपर विचार करते समय केवल उन्हीं मामलोंमें सैटिलमेंट अदालतने लगानको उचित और न्यायसंगत ठहराया जिनमें तिन-कठियावाली बाध्यता सिद्ध हो गई थी और लगानकी दर नोची थी। अतः मेरी समझमें इसका कोई भय नहीं है कि कमी कर देनेके बादके नये लगानोंकी दर उचित और न्यायसंगत नहीं होगी। श्री गांधीने कहा कि सैटिल-मेंट अफसरने जो निर्णय दिये वे गलत थे और उसने कानूनको व्याख्या भी गलत की थी। मुझे सन्देह है कि कानूनी छानबीनके सामने सैटिलमेंट अदालतके फैसले ठीक ठहर सकेंगे। मेरी रायमें न्यायकी दृष्टिसे बन्दोबस्तके फैसले गलत थे। श्री गांधीने इसके बाद १९१६ की स्पेशल अपील सं० १४ में स्पेशल जजके उस फैसलेका फिर उल्लेख किया जिसमें स्पेशल जजने सैटिलमेंट अफसरका यह मत ठीक ठहराया था कि प्रति रुपया ०-४-८ की वृद्धि अनुचित है। उन्होंने कहा, यदि सैटिलमेंट अदालतोंकी रायमें ०-४-८ की वृद्धि अनुचित थी, और उन्होंने सिर्फ ३ आनेकी वृद्धिको अनुमति देना स्वीकार किया था, तो वही अदालतें दूसरे मामलोंमें १०० प्रतिशत तक की वृद्धिको उचित और न्यायसंगत कैसे ठहरा सकती हैं? ... श्री रेनीने कहा कि श्री गांधी कानूनन की गई वृद्धिके मामलेको उचित और न्यायसंगत लगानके मामलेसे नाहक जोड़ रहे हैं। बेतिया राज द्वारा अपने लगानके बन्दोबस्तके लिए दी गई अर्जियाँ इस धारणापर आधारित हैं कि मौजूदा लगान उचित और न्यायसंगत है। शरहबेशीवाले मामलोंमें ऐसी धारणाका प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि उनमें लगानकी दर बहुत कम थी। कानूनी दृष्टिकोण और न्यायसंगत दृष्टिकोणमें सावधानीके साथ भेद करना बहुत जरूरी है।

श्री गांधीने कहा कि उचित और न्यायसंगत लगान क्या है, यह तय करते समय जमीनकी उपजपर ही विचार नहीं करना चाहिए। चूँकि लगान जमीनके उत्पादनका केवल एक छोटा-सा हिस्सा होता है, इसीलिए वह बहुत कम है ऐसा नहीं कहा जा सकता। मेरी कठिनाई यह है कि बागान-मालिकोंके और मेरे दृष्टिकोणमें अन्तर है, और जहाँ दृष्टिकोणोंमें भेद हो वहाँ पारस्परिक सहमतिसे मामलोंको तय कर सकना बहुत ही कठिन होता है। मैं दण्डस्वरूप वृद्धिसे कभी सहमत नहीं हो सकता, और इस समय