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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


२५ प्रतिशतकी कमी करने के प्रस्तावमें मुझे दण्डस्वरूप वृद्धिको बात नजर आती है। मैं कुछ निर्णय करने से पहले विचार करनेके लिए थोड़ा समय चाहता हूँ। श्री इविनने विशम्भरपुर गाँवका उदाहरण दिया जो छोटे-छोटे मालिकोंके स्वामित्वमें था। उन्होंने कहा कि यह गाँव मेरे पट्टमें नहीं है हालांकि यह बेतिया राजके उन गाँवोंसे घिरा हुआ है जो मेरे पट्टमें हैं। विशम्भरपुरमें लगानको दर रु० ९ से लेकर कहीं-कहीं रु० १४ प्रति बीघे तक थी जब कि उसके चारों ओरके मेरे पट्टेवाले गाँवोंमें लगानकी औसत दर शरहबेशी मिलाकर भी रु० ४ से रु० ५ प्रति बीघेसे अधिक नहीं थी। यदि इस प्रस्तावसे रैयतको काफी लाभ होनेकी बात है, तब मेरी समझमें नहीं आता कि यह किस तरह कहा जा सकता है कि रैयतके लिहाजसे यह प्रस्ताव अनुकूल नहीं है। श्री गांधीने यह तो माना कि रैयतके दृष्टिकोणसे कानूनी स्थिति सर्वथा निराशाजनक नहीं है।

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श्री गांधोने कहा कि मैंने निम्नलिखित आँकड़े निकाले हैं:

शरहबेशीमें प्रति बीघे १९ या २० आने से लेकर ३० या ३२ आने तक की वृद्धि हुई है। २५ प्रतिशतकी छूट देनेपर यह वृद्धि घटकर १४ आने ९पाई या १५ आनेसे लेकर २२ आने ६ पाई या २४ आने रह जायेगी। मेरे हिसाबसे, यदि लगानकी दर रु०२-६-० प्रति बीघे हो, तो मेरे प्रस्तावके अन्तर्गत प्रति बीघे १० आनेकी वृद्धि होगी, और इसमें तथा दूसरे लोगों द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावोंके अन्तर्गत होनेवाली वृद्धिकी रकममें बहुत-काफी अन्तर है। अध्यक्षने कहा कि मोतीहारीमें शरहबेशीकी रकम पुराने लगानका ६० प्रतिशत थी। इसे घटाकर ४५ प्रतिशत कर देनेका प्रस्ताव है, जब कि श्री गांधीका प्रस्ताव है कि केवल २५ प्रतिशत दिया जाये। इन दोनोंमें २० प्रतिशतका अन्तर है। श्री रेनीने कहा कि कुछ मामले हैं जिनमें प्रतिशतके हिसाबसे ही कुछ तय करना भ्रामक होगा, क्योंकि जिन जगहोंपर शरहबेशीका प्रतिशत अधिक था वहाँ, जैसे पिपरामें, लगान बहुत कम था। अध्यक्षने कहा तुरकौलिया और मोतीहारी, इन दोनों स्थानोंमें थोड़ेसे मामलोंको छोड़कर रैयतने पिछले छः वर्षोंसे बिना किसी आपत्तिके बढ़ा हुआ लगान दिया है, और मेरा खयाल है कि २५ प्रतिशतकी छूट रैयतके लिए काफी बड़ी रियायत है। श्री गांधीने कहा कि मैं इस प्रश्नपर रैयतको छः साल पहले जो माँगनेका हक था, उसको दृष्टिसे विचार करता हूँ क्योंकि यदि इससे पहले उन्होंने कोई आपत्ति नहीं उठाई तो इसका कारण था अपनी कानूनी स्थितिके सम्बन्धमें उनका अज्ञान। अध्यक्षने कहा कि एक विशेष अदालतकी स्थापना न हो, उसका एकमात्र तरीका यही है कि सहमतिसे समझौता हो जाये। यह बहुत अनिश्चित है कि रैयतके सामने इस समय जो शर्तें रखी जा रही हैं, अदालत उन्हें उससे अच्छी शर्तें दे ही देगी। श्री गांधी भले ही ऐसा मानते हों कि शरहबेशी सहित वर्तमान लगानमें प्रस्तावित छूट उचित और न्यायसंगत नहीं है, पर क्या वे यह भी स्वीकार नहीं करेंगे कि रैयत इतना लगान आसानीसे दे सकती है। श्री गांधीने कहा, मैं चम्पारनकी रैयतको गरीब मानता हूँ और में यह माननेको