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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीका सारांश

होगी; हालांकि उनका खयाल यह है कि यह बात बागान-मालिकोंके लिए मुश्किल हो जायेगी। श्री रेनीने कहा कि वे श्री गांधीकी इस बातसे सहमत हैं कि समितिको भली प्रकार छानबीन करके कुछ ठोस प्रमाण जुटानेके बाद ही कोई बात कहनी चाहिए। यदि महाराजा गद्दीपर होते, तो विवादका निपटारा करानेके खयालसे राजके सामने ऐसा प्रस्ताव रखनमें उनको कोई हिचक न होती, लेकिन अब चूँकि राजके प्रबन्धका भार एक ट्रस्टीके रूपमें सरकारके ही हाथोंमें है, इसलिए ऐसा कोई प्रस्ताव रखने से पहले उसपर सावधानीसे विचार कर लेना चाहिए। उनके विचारसे राज वर्त्तमान स्थितिके दायित्वसे इनकार नहीं कर सकता। अध्यक्षने पूछा कि क्या समितिके लिए इतना ही पर्याप्त नहीं होगा कि वह मुकर्ररी पट्टोंसे सम्बन्धित लिखा-पढ़ीकी छानबीन कर ले और मुकर्ररी जमा तथा गाँवों द्वारा पट्टोंकी मंजुरीके समय और आजकल अदा किये गये लगानकी रकमोंका मिलान कर ले? श्री गांधीने कहा कि इतना पर्याप्त नहीं होगा; क्योंकि ‘कोर्ट ऑफ वार्ड्स’ पहले यह जानना चाहेगा कि आगे चलकर बागान-मालिकोंको कोई हानि तो नहीं होने जा रही है; क्योंकि समिति अब इस मामले में तीसरे पक्षको भी बीचमें ला रही है और उसकी स्थितिका भी ध्यान रखेगी। श्री रोडने कहा कि यह बात सरकारपर ही क्यों नहीं छोड़ी जा सकती; परन्तु अध्यक्षने कहा कि यदि सम्भव हो तो समितिको अपना निर्णय स्वयं ही करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया तो इसके लिए एक विशेष न्यायाधिकरण बैठानेकी सिफारिंश करने या इसका निर्णय न्यायालयोंपर छोड़नेके अलावा कोई चारा नहीं रह जायेगा। सरकारको पंच बनाने के प्रस्तावके खिलाफ यदि केवल एक सदस्यको असहमति होती तो शायद इसका निर्णय सरकार पर छोड़ा भी जा सकता, लेकिन राजा कीर्त्यानन्द सिंह भी इससे सहमत नहीं हैं, इस लिए इसमें मध्यस्थ-निर्णय नहीं हो सकता। इससे बागान-मालिकोंको हानि होगी और रैयतको तो उससे भी ज्यादा। श्री ऐडमीने कहा कि इस प्रस्तावसे सहमत होना स्पष्ट ही राजके हितमें है और यह सरकार के सामने पेश किया जाना चाहिए और सरकार इसपर कोई आदेश देनेसे पहले राजस्व बोर्डसे परामर्श करेगी ही। वे प्रस्ताव स्वीकार करनेके लिए तैयार हैं। राजा कीर्त्यानन्द सिंहने भी कहा कि वे प्रस्ताव स्वीकार करनेके लिए तैयार हैं; हालांकि सरकार ‘कोर्ट ऑफ वार्डस्’ की राय लेकर ही अन्तिम आदेश जारी करेगी। श्री रेनीने भी सहमति प्रकट करते हुए कहा कि लेकिन समितिको इस प्रस्तावके औचित्यके बारेमें सरकारको पूरी बात समझा देनी चाहिए। श्री गांधीने कहा कि यदि वे प्रस्तावको उचित मान लें, तो भी इस बातसे सहमत नहीं हो सकते कि राज पन्द्रह वर्षकी इतनी लम्बी अवधि तक यह हानि सहन करता रहे। श्री रीडने बतलाया कि इसके बारेमें सरकारको खुद अपनी तसल्ली करनी चाहिए। श्री गांधीने कहा कि तथ्योंको जाने बिना वे प्रस्तावको स्वीकार भी नहीं कर सकते कि भविष्यमें क्या होने जा रहा है। उनके खयालसे तो समिति राजको आगे चलकर