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३२. तार : ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघको

बोलपुर

[फरवरी २०, १९१५]

गांधी
जोहानिसबर्ग

गोखलेका स्वर्गवास । सार्वजनिक शोकका सुझाव | हम सभी आंशिक उपवासपर ।

गांधी, पूना

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी मसविंदे (सी० डब्ल्यू० ५६६५) से। सौजन्य : राधाबेन चौधरी

३३. भाषण : गोखलेकी मृत्युपर शान्तिनिकेतनमें

फरवरी २०, १९१५

आजकी रात यहाँ अपने विचार प्रकट करते हुए मेरी एक ही अभिलाषा है: मेरे हृदयके भाव आपके हृदयोंतक पहुँचे और हम लोगोंके बीच वास्तविक एकात्म स्थापित हो ।

आप सब लोगोंको तुलसीदासजीकी रामायणके बारेमें कुछ-न-कुछ तो मालूम ही होगा। उसका सबसे अधिक मर्मस्पर्शी अंश वह है जहाँ रचयिताने सत्संगकी महिमाका वर्णन किया है। हमें उन लोगोंकी संगतिकी कामना करनी चाहिए, जिन्होंने कष्ट उठाये हैं, दूसरोंकी सेवा की है और उसीमें शरीर-त्याग किया है। श्री गोखले ऐसे ही व्यक्ति थे। उनका देहान्त अवश्य हो गया है, परन्तु उनका कार्य जीवित है, क्योंकि उनकी आत्मा जीवित है।'

गोखलेकी कार्यदक्षताके बारेमें लोगोंको पता लग चुका है। उनके कर्मठ जीवनके विषयमें भी सभी जानते हैं। परन्तु उनके धार्मिक जीवनके सम्बन्धमें बिरले ही जानते होंगे। उनके समस्त कार्योंका स्रोत सत्य था ।

जो कुछ भी वे करते थे, उस सबके--उनकी राजनीति तकके - मूलमें सत्य ही रहा करता था। उन्होंने इसी उद्देश्य से भारत सेवक समाज (सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) की स्थापना की थी, जिसका लक्ष्य राष्ट्रके सामाजिक और राजनीतिक जीवनमें आध्या- त्मिकता लाना है।

१. यह अनुच्छेद तत्त्वबोधिनी पत्रिकाके फरवरी १९१५ के अंक में प्रकाशित गँगला-विवरणसे लिया गया है।