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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

हैं; किन्तु पंच-निर्णय के असफल होनेकी अपेक्षा वे इसे बनाये रखना पसन्द करते हैं। जहाँ किसान नीलकी खेतीका इकरार कर चुका हो वहाँ उसे यह चुननेका अधिकार है कि या तो इकरारके मुताबिक नीलकी खेती करे या उसके बदले निश्चित दरके अनुसार रकम अदा कर दे। पंच-निर्णय आपत्कालीन विधान द्वारा अमलमें लाया जायेगा।

इसके बाद अध्यक्षने कहा कि यदि महामान्यने पंच-निर्णय करना स्वीकार कर लिया तो रिपोर्टमें शायद इस तथ्यका उल्लेख-भर होगा। श्री गांधीने कहा कि वे सबसे पहले पंचनिर्णय हो जाना ज्यादा अच्छा समझते हैं; इसके बाद जिस अंकपर फैसला हो उसे समितिकी सिफारिशके रूपमें रिपोर्टमें शामिल कर लिया जाये। साथ ही यह सिफारिश भी की जाये कि इसे अमल में लाने के लिए कानून बना देना चाहिए। समितिने इसपर अपनी सहमति दे दी।

इसके बाद अध्यक्षने कहा कि अब उनको रिपोर्टपर विचार करना है। उन्होंने श्री गांधीसे कहा कि वे अपने आम विचार समितिके सामने रखें। श्री गांधीने कहा कि मेरे विचारमें रिपोर्ट हमारे हिसाबसे बहुत लम्बी है और एक संक्षिप्त जाँच-पड़ताल के बाद समितिका इतनी लम्बी-चौड़ी कहानी पेश करना ठीक नहीं है। उन्होंने बताया कि सारी सामग्री सरकारी रेकॉडोंमें दर्ज है और विचारार्थ विषयके कारणोंमें गये बिना केवल निष्कर्ष ही दिये जाने चाहिए थे। उन्होंने देखा है कि जिन पंच-निर्णायकोंने कारण नहीं दिये, वे सभी ज्यादा सफल रहे। अध्यक्षने कहा कि यदि सब सदस्य इसे ठोक मानें तो मैं सहमत हूँ।

अध्यक्षने कहा कि रिपोर्टमें मुकर्ररी गाँवोंके तावानपर विचार नहीं किया गया। उसमें केवल ठेकागाँवोंमें तावानके मामलेपर विचार किया गया है। उन्होंने विशेष रूपसे राजपुरके मामलेका उल्लेख किया। श्री गांधीने कहा कि मेरे विचारमें तावानका एक अंश श्री हडसनको वापस देना चाहिए; क्योंकि तिन-कठिया नीलके स्थानपर खुश्की नील रखनेसे उन्हें कोई हानि नहीं हुई है, यदि आवश्यकता हो तो विशेष विधान द्वारा भुगतान लागू किया जा सकता है।

इसके बाद अध्यक्षने एक सहमति-टिप्पणी सामने रखी जो कि माननीय राजा कीर्त्यानन्द सिंहने बंगाल काश्तकारी अधिनियमके खण्ड ७५ और ५८ के सम्बन्धमें की गई सिफारिशोंके खिलाफ पेश की थी। खण्ड ७५ में किये गये संशोधनके सम्बन्धमें श्री ऐडमीने बताया कि इस आधारपर आपत्ति वैध न हो इसलिए विधान-सभाने पहले ही उल्लंघनसे सम्बन्धित दो वैकल्पिक तरीकोंको अमलमें लानेका सिद्धान्त स्वीकृत कर लिया था। श्री गांधीने कहा कि बादमें कानूनी नुक्ता न उठे इसलिए आपत्ति वैध लगती है; किन्तु इस आपत्तिका निराकरण हो जाता है, क्योंकि कमिश्नरसे अपील की जा सकेगी। अध्यक्षने बताया कि सिफारिश वस्तुतः उक्त खण्डको सर्वथा वैसा ही बना देनेके लिए की गई है, जैसा कि वह छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियममें है। और उन्होंने राजा साहबसे पूछा कि यदि सिफारिशको चम्पारन जिले तक ही सीमित कर दिया