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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाये तो क्या वे सहमत नहीं होंगे? राजा कीर्त्यानन्द सिंहने कहा कि इस शर्तपर वे सहमत होनेको तैयार हैं।

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १८१, पृ० ३५१-६।
 

४०८. चम्पारन-समितिको बैठकको कार्यवाही से

रांची
सितम्बर २५, १९१७

अध्यक्षने कहा, मैं लेफ्टिनेंट गवर्नरसे मिल चुका हूँ। उन्होंने कहा है कि वे स्वयं अपने द्वारा पंच-निर्णय दिये जानेके प्रस्तावका निश्चित उत्तर देनेके लिए तैयार नहीं हैं। उनके लिए यह स्थिति स्वीकार करना कुछ कठिन होगा, क्योंकि उन्हें सरकारके प्रधानकी हैसियतसे रिपोर्टपर कार्रवाई करनी होगी। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया है कि यदि न्यायालयका कोई न्यायाधीश पंच-निर्णय देने के लिए नियुक्त कर दिया जाये तो यह सम्भवतः अधिक अच्छा होगा। श्री गांधीने कहा कि मेरी समझमें यह पंच-निर्णय कोई बाकायदा और औपचारिक पंच-निर्णय नहीं है इसलिए इस पंच-निर्णय के लिए किसी ऐसे व्यक्तिको आवश्यकता नहीं है जो कानूनी बारीकियाँ समझता हो बल्कि ऐसे व्यक्तिकी आवश्यकता है जो चतुराईसे काम ले सके। श्री रोडने कहा कि इर्विन और हिल पंच-निर्णयकी बात मान लेंगे, इसमें सन्देह है, और यह तो तय है कि वे उच्च न्यायालयके न्यायाधीशको पंच बनानेकी बात कभी न मानेंगे। अध्यक्षने कहा कि ऐसी परिस्थितिम पंच-निर्णयके प्रस्तावपर विचार करनेसे कोई लाभ नहीं है।श्री गांधीने इस विचारसे सहमति प्रकट की; किन्तु कहा कि मुझे फिर भी पंच-निर्णय करा सकनेकी आशा है।

अध्यक्षने रिपोर्टपर हुई बहसका जिक्र करते हुए कहा कि आरम्भका वह भाग निकाला जाये या नहीं जिसमें इन प्रश्नोंसे सम्बन्धित इतिहास दिया गया है। यह ध्यान रखना है कि कुल मिलाकर रिपोर्ट लोगोंको समझमें आनी चाहिए और उससे ऐसा आभास नहीं मिलना चाहिए कि समितिने बेगार टाली है। श्री रेनीने कहा कि दूसरे अध्यायको निकाल देनमें उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। श्री ऐडमी दूसरे अध्यायको ज्योंका-त्यों रखनेके पक्षमें थे। राजा कीर्त्यानन्द सिंहने सुझाव दिया कि ठीकेदारी प्रथासे सम्बन्धित अनुच्छेद छोटा किया जा सकता है। श्री रोडने कहा कि उन्हें दूसरे अध्यायको कायम रखनेमें कोई आपत्ति नहीं दिखाई देती। कोई भी व्यक्ति समस्याके वर्तमान रूपको समझ सके, इसके लिए वह आवश्यक है। श्री गांधीने कहा कि यदि रिपोर्ट सर्वसम्मत न हो तो मैं इसे समझ सकता हूँ; बहुमत यदि अपनी