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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और अब उस मनोहर राष्ट्रीय गीतकी बात लें, जिसे सुनते ही हम सब श्रद्धा- वश उठ खड़े हुए। उसमें कविने उन समस्त विशेषणोंका उपयोग कर डाला है, जिनका उपयोग भारतमाताके लिए सम्भव है। उन्होंने भारत माताको सुहासिनी, सुमधुर भाषिणी, सुवासिनी, सर्वशक्तिमती, सर्वसद्गुणवती, सत्यवती, सुजला, सुफला, शस्यश्यामला और महान् स्वर्णयुगमें ही सम्भव हो ऐसी मानव-जातिसे बसी हुई बताया है। क्या हमें यह गीत गानेका अधिकार है ? मैं अपने आपसे पूछता हूँ, “क्या मुझे उस गीतको सुनकर तुरन्त उठ खड़े होनेका कोई अधिकार है ? " निस्सन्देह कविने हमारे सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया, जिसके शब्द किसी भविष्य-द्रष्टाके शब्द-मात्र हैं, और हमारी इस मातृ- भूमिका वर्णन करते हुए उन्होंने जो शब्द कहे हैं, उनमें से प्रत्येकको चरितार्थ करना आप लोगोंका •जो भारतकी आशा हैं, काम है। इस समय तो मैं यही समझता हूँ कि मातृभूमिके वर्णनमें इन विशेषणोंका प्रयोग बहुत ही अतिशयोक्तिपूर्ण है, और कविने मातृभूमिकी ओरसे जो दावे किये हैं, उन्हें आपको और मुझे सिद्ध करना है।

वास्तविक शिक्षा

अब आपसे, आप मद्रासके विद्यार्थियोंसे और समस्त भारतके विद्यार्थियोंसे, मैं पूछता हूँ कि क्या आप लोग ऐसी शिक्षा पा रहे हैं जो आप लोगोंको उस आदर्शको चरि- तार्थ करनेके योग्य बना सके और जो आपके सर्वोत्तम गुणोंको निखार सके ? या कि यह शिक्षा एक ऐसा कारखाना बन गई है जो सरकारके लिए नौकर अथवा व्यापारिक कार्यालयोंके लिए क्लर्क तैयार करे ? जो शिक्षा आप लोग प्राप्त कर रहे हैं, उसका अन्तिम उद्देश्य क्या यही है कि आप लोग सरकारी अथवा दूसरे विभागोंमें नौकरी प्राप्त करें ? यदि आप लोगोंकी शिक्षाका अन्तिम उद्देश्य यही है - यदि आप लोगोंने अपने सामने यही उद्देश्य रखा है -- तो मैं समझता हूँ और मुझे इस बातकी आशंका है कि कविने अपने लिए भारत माताका जो चित्र खींचा है, उसका साकार हो पाना बहुत दूरकी बात है। जैसा कि आप लोगोंने मुझे कहते हुए सुना होगा अथवा कदाचित् आप लोगोंने पढ़ा भी होगा, मैं आधुनिक सभ्यताका कट्टर विरोधी हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप आजकल यूरोपमें जो कुछ हो रहा है, जरा उस ओर नजर दौड़ा कर देखिए; और तब यदि आप इस निष्कर्षपर पहुँचें कि यूरोप आजकल आधुनिक सभ्यताके पैरों तले पड़ा हुआ कराह रहा है तो आपको और आपके गुरुजनोंको अपनी इस मातृभूमिमें उस सभ्यताकी नकल करनेसे पहले कुछ सोच-विचार करना पड़ेगा। लेकिन लोगोंने मुझसे कहा है कि “ऐसी दशामें, जब कि हम देखते हैं कि हमारे शासक ही उस सभ्यताको हमारी मातृभूमिमें ला रहे हैं तो, हम उसे कैसे रोक सकते हैं? " लेकिन इस सम्बन्ध में किसी भ्रममें न रहें। मैं एक क्षणके लिए भी इस बातका विश्वास नहीं कर सकता कि जबतक आप लोग उस सभ्यताको ग्रहण करनेके लिए तैयार न हों तब तक हमारे शासक हम पर वह सभ्यता लाद सकते हैं। और फिर यदि ऐसा हो भी कि हमारे शासक उस सभ्यताको हम पर लादनेकी कोशिश कर रहे हैं तो मैं समझता हूँ कि हमारे भीतर इतनी शक्तियाँ मौजूद हैं कि अपने शासकोंको ठुकराये

१. समारोहकी कार्यवाही " वन्देमातरम् "के गायनसे प्रारम्भ हुई थी ।