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६३. भाषण : मद्रासके भारतीय ईसाइयोंके स्वागत समारोहमें

अप्रैल २६, १९१५

वेजलेयन मिशन, पीटर्स रोड, रायपेटाके रेवरेंड टी० और श्रीमती सुब्रह्मण्यमने कल अपने घरपर कुछ यूरोपीय प्रचारकों और भारतीय ईसाइयोंको जो पादरीवर्ग और सामान्य ईसाई-समाजका प्रतिनिधित्व करते थे, गांधी दम्पतिके स्वागतार्थ बुलाया। बैरिस्टर श्री एम० डी० देवदास और श्री वी० चक्काराई चेट्टीने मद्रासके भारतीय ईसाई समाजकी ओरसे उनके स्वागतार्थ कुछ शब्द कहे...।

श्री गांधीने उत्तर देते हुए कहा कि मैं जब दक्षिण आफ्रिकामें था तब मुझे कैनन बूथ और अन्य पादरियों एवं समस्त भारतीय ईसाइयोंका हार्दिक सहयोग और सहानुभूति प्राप्त थी। मेजबानोंको आवभगतके लिए धन्यवाद देकर गांधी दम्पतिने उनसे विदा ली।

[ अंग्रेजीसे ]

मद्रास मेल, २७-४-१९१५

६४. भाषण : वाई० एम० सी० ए०, मद्रासमें

अप्रैल २७, १९१५

सभापति महोदय तथा प्यारे मित्रो, मेरे तथा मेरी स्त्रीके गुणोंका उल्लेख करते हुए मद्रासने अंग्रेजी शब्द-कोशके प्रायः समस्त विशेषणोंका प्रयोग कर डाला है और यदि मुझसे यह बतलानेके लिए कहा जाये कि वह कौन-सा स्थान है, जिसने मुझे कृपा, प्रेम तथा शालीनताके व्यवहारसे अभिभूत कर दिया है तो मुझे कहना पड़ेगा कि वह स्थान मद्रास है ( करतल ध्वनिसे) । लेकिन मैंने अनेक बार कहा ही है कि मद्रासके सम्बन्ध में मेरा यही विचार है। अतः आप लोग मुझपर अनुपम सुजनतासे जो अनुग्रहकी वर्षा कर रहे हैं वह मेरे लिए कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। और अब जिस भारत सेवक समाज (सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) की अधीनतामें में आजकल अपना परीक्षा-काल बिता रहा हूँ उसके सभापतिने, यदि मैं कह सकूं तो, इस मालामें सुमेरु ही लगा दिया है। क्या मैं इन सब बातोंके योग्य हूँ? मेरे हृदयके अन्तरतम भागसे उत्तर निकलता है कि "नहीं"। किन्तु मैं भारत आया हूँ आप मेरे लिए जिन विशेषणोंका भी उपयोग करें, उन सबके योग्य बननके लिए और यदि मैं एक योग्य सेवक बनना चाहूँ तो निश्चय ही उसके लिए मुझे अपना सारा जीवन अपने-आपको उन विशेषणोंके योग्य सिद्ध करनेमें उत्सर्ग कर देना पड़ेगा।

१. मद्रासके विद्यार्थियों द्वारा भेंट किये गये मानपत्रके उत्तर में। इस आयोजनकी अध्यक्षता श्री वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीने की थी ।