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२०. भाषण : अन्त्यज परिषद् में

गोधरा
नवम्बर ५,१९१७

जिनके[१] सहारे मैं खड़ा हूँ उनको लक्ष्य करके कहता हूँ कि अपनी बाहरी पोशाकसे वे जैसी साधुवृत्तिके लगते हैं, यदि भीतरसे भी वैसी ही साधुवृत्तिके हों तो स्वराज्य जल्द ही मिल जायेगा। वे धारासभामें भी इसी वेशमें संघर्ष चलायें तो हमारी इच्छा और भी जल्दी पूरी हो। अन्त्यज भाइयोंसे मैं यह कहता हूँ कि आज आप हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच में बैठे हैं। हिन्दू धर्ममें यह बात कहीं भी नहीं है कि जो लोग हमारी सेवा करते हैं उन्हें छूनेमें पाप होता है। इतनी भीड़ होनेके बावजूद किसीका पैर तक नहीं कुचला गया। जहाँ ऐसी शांति हो वहाँ परमेश्वर है ही। ईश्वर सर्वव्यापी है, यह सूत्र किसी राजनैतिक सम्मेलन अथवा संसार-सुधार परिषदमें निश्चित किया गया हो, यह मैं नहीं मानता; लेकिन वह यहाँ तो अवश्यउ पस्थित है। जहाँ पाखण्ड, झूठ, भेदभाव तथा अमुक व्यक्तिको स्पर्श न करनेकी मान्यता हो वहाँ विष्णु भगवान्, खुदा अथवा रसूल उपस्थित नहीं रह सकते।

इसके बाद गांधीजीने गंगाबेनसे[२] अन्त्यजोंको आश्रय देने और उन्हें पढ़ना-लिखना सिखानेका अनुरोध किया।

[गुजरातीसे]
गुजराती, ११-११-१९१७

२१. हिन्दू धर्मके माथेपर कलंक

[गोधरा
नवम्बर ५, १९१७ के बाद]

अछूतोंका एक जुदा वर्ग बना देना हिन्दू धर्मके माथेपर कलंक है। जात-पाँत एक बन्धन है, पाप नहीं। अछूतपन तो पाप है, सख्त जुर्म है, और यदि हिन्दू धर्म इस बड़े साँपको समय रहते नहीं मार डालेगा, तो वह उसको खा जायेगा। अछूतोंको अब हिन्दू धर्मके बाहर हरगिज न समझना चाहिए। उन्हें हिन्दू-समाजके मातबर आदमी समझना चाहिए और उनके धन्धेके मुताबिक वे जिस वर्णके लायक हों, उसी वर्णका उन्हें समझना चाहिए।

 
  1. विठ्ठलभाई जे॰ पटेल, जो बादमें मॉण्टेग्यु-चैम्सफोर्ड सुधारों के अन्तर्गत केन्द्रीय विधान सभाके सर्वप्रथम स्पीकर निर्वाचित हुए थे। वे परिषदमें साधु-वेशमें उपस्थित हुए थे।
  2. साबरमती आश्रममें निवास करनेवाली एक महिला जिन्होंने आगे चलकर चरखे अथवा करघेके जनप्रिय रूपका प्रचलन किया।