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भाषण : मुजफ्फरपुरमें

दूसरोंकी स्वतन्त्रता छीन लेनेका कोई अधिकार नहीं है। एक दूसरेकी स्वतन्त्रता छीन लेनेका प्रयत्न करनेमें ही झगड़े खड़े होते हैं। यदि कोई मुसलमान आदेशके स्वरमें कहेगा कि कोई भी हिन्दू ढोल न बजाये तो हिन्दू कभी नहीं मानेगा, पर यदि अपने मुसलमान भाई नम्रतापूर्वक कहें कि आप ढोल न बजायें, हमारे धर्म-कार्य नमाजमें खलल न डालें, और यदि आप ऐसा करेंगे तो हम अपने ही खूनकी नदी बहा देंगे, तो मैं विश्वास करता हूँ कि कोई भी हिन्दू भाई इतना नासमझ नहीं निकलेगा जो इस प्रार्थनाके विरुद्ध व्यवहार करेगा। परन्तु सच्ची बात तो यह है कि इस सम्बन्धमें हिन्दू और मुसलमान, किसीका भी मन साफ नहीं है। यदि हम मेल और प्रेम चाहते हैं तो वह मुहब्बतसे ही हो सकेगा; भय दिखाकर तो कभी नहीं हो सकेगा। हम अपने दिलकी बात कभी भी साफ-साफ नहीं कह पायेंगे।

मैं यह कहता आया हूँ कि राष्ट्रीय भाषा एक होनी चाहिए और वह हिन्दी होनी चाहिए। मैंने सुना है कि इस सम्बन्धमें कई मुसलमान बन्धुओंके मनमें गलतफहमी है। उनमें बहुतेरोंका खयाल है कि 'हिन्दी होनी चाहिए' यह कहकर मैं उर्दूका विरोध करता हूँ। हिन्दी भाषासे मेरा मतलब उस भाषासे है जिसे उत्तर भारतमें हिन्दू और मुसलमान दोनों बोलते हैं और जो नागरी तथा उर्दू लिपिमें लिखी जाती है। उर्दूके लिए मेरे मनमें कोई द्वेष नहीं है। मेरी तो यह मान्यता है कि दोनों भाषाएँ एक ही हैं। मेरे खयालसे तो दोनों भाषाओंका गठन, दोनोंका ढंग, संस्कृत और अरबी शब्दोंके भेदको छोड़कर, एक ही प्रकारका है। मेरा झगड़ा तो अंग्रेजीके विरुद्ध है। मुझे द्वेष उससे भी कोई नहीं है; परन्तु अंग्रेजी भाषाके माध्यमसे हम अपनी जनतासे घुलमिल नहीं सकते और उनके साथ एकरस होकर काम नहीं कर सकते। मेरे कहनेका आशय इतना ही है। हिन्दीको आप हिन्दी कहें या हिन्दुस्तानी; मेरे लिए तो दोनों एक ही है। हमारा कर्त्तव्य यह है कि हम अपना राष्ट्रीय कार्य हिन्दी भाषामें करें। लिपिके सम्बन्धमें यह होगा कि हिन्दू बालक नागरीमें लिखेगा और मुसलमान उर्दूमें। इससे किसी प्रकारकी भी हानि नहीं है। पर दोनों ही दोनों लिपि सीखेंगे। हमारे बीच हमें अपने कानोंमें हिन्दीके ही शब्द सुनाई दें—अंग्रेजीके नहीं। इतना ही नहीं हमारी धारासभाओंमें जो वाद-विवाद होता है वह भी हिन्दीमें होना चाहिए। ऐसी स्थिति लानेके लिए मैं जीवनभर प्रयत्न करूँगा।

अब एक बात और कहनी बाकी रह गई है। सारे हिन्दुस्तानमें स्वराज्यका आन्दोलन चल रहा है। शाहाबादमें जो दंगा हुआ है उससे हमें स्वराज्यकी प्राप्तिमें विलम्बका कारण ज्ञात होता है। स्वराज्य निरी अर्जियों या भाषणोंसे नहीं मिलेगा। यदि हिन्दू कहेगा कि एक गायकी रक्षा करने के लिए मैं एक मुसलमानका खून पी जाऊँगा तब तो हमें कभी स्वराज्य प्राप्त नहीं होगा। यदि दोनों कौमोंके बीच मेल हो जाये; यदि दोनों कह दें कि हम आपसी झगड़ोंको स्वयं ही निबटा लेंगे, उसमें किसी बाहरी व्यक्तिके बीच में पड़नेकी जरूरत नहीं है। यदि हम इतना विश्वास दे सकें तो स्वराज्य मिलकर रहेगा। स्वराज्यके लिए शिक्षाकी आवश्यकता नहीं है, केवल हमारे बीच एकता होनी चाहिए। हममें ताकत होनी चाहिए। स्वराज्यसे भी पूर्व हममें निर्भयता होनी