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४८. पत्र : राजस्व सचिवको

मोतीहारी
दिसम्बर १९, १९१७

सेवामें

सचिव
राजस्व विभाग
बिहार और उड़ीसा सरकार
पटना

महोदय,

मुझे आपके ६ दिसंबर १९१७ के पत्र सं॰ ११६—२-टी—४४-आर॰ टी॰ की, जिसके साथ आपने चम्पारन काश्तकारी विधेयककी एक प्रति भेजी है[१] और उसके सम्बन्धमें मेरी सम्मति माँगी है, प्राप्ति स्वीकार करनेका सम्मान प्राप्त है। मेरा निवेदन इस प्रकार है:

(१) खण्ड ४ के सम्बन्धमें, मैं देखता हूँ कि यद्यपि उपखण्ड (क) और उपखण्ड (ख) एक ही समझौतेसे सम्बन्धित हैं, फिर भी उपखण्ड (क) का क्षेत्र उपखण्ड (ख) के क्षेत्रसे अधिक व्यापक है। मैं इसके कारणकी कल्पना नहीं कर सका हूँ; किन्तु मेरा सुझाव है कि उपखण्ड (ख) की भाषा उपखण्ड (क) के लिए भी जैसीकी-तैसी ले ली जाये और इसलिए उपखण्ड (क) की पंक्ति २ में जो 'शर्त' शब्द आता है उसे निकाल दिया जाये। और तदनुसार पंक्ति ३ में जो 'खण्ड ३' शब्द आते हैं उनके स्थानमें "खण्ड ३ का उप-खण्ड २" शब्द रख दिये जायें।

(२) खण्ड ५ के सम्बन्धमें, मेरा निवेदन यह है कि समितिकी सिफारिशोंके अन्तर्गत जमींदारों और उनके काश्तकारोंके करार आते हैं, जमींदारों और उनके अपने पट्टेदारों एवं उन पट्टेदारोंके करार इसके अन्तर्गत नहीं आते।

ऐसे अनेक काश्तकार हैं जो उन जमींदारोंसे करार करते हैं जिनकी जमींदारीमें वे नहीं आते। इसलिए इस खण्डकी पंक्ति २ में पड़े हुए शब्द "पट्टेदार चाहे उसका पट्टा उसकी अधीनतामें आता हो" इस प्रकार संशोधित कर दिये जायें—"पट्टेदार चाहे उसका पट्टा उसकी अधीनतामें आता हो या किसी अन्यकी अधीनतामें", और इस खण्डकी पंक्ति ३ और ४ में से ये शब्द निकाल दिये जायें, "अपनी पट्टेदारीकी जमीनमें या उसके किसी भागमें उगाये गये।"

 
  1. विधेयकको प्रवर समितिके सुपुर्द करनेके बाद इसकी प्रतियाँ राजस्व सचिवने गांधीजी, बिहार जमींदार संघ और बिहार बागान-मालिक संघको सम्मत्यर्थ भेजी थीं