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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय


निवेदन है कि ये अन्तिम शब्द अनावश्यक है। अभिप्रेत यह है कि कानूनसे, पैदावारकी बिक्रीके सम्बन्धमें जमींदारों और काश्तकारोंके बीच जो भी करार हुए हैं उन सबके सम्बन्धमें, काश्तकारोंकी रक्षा की जाये।

(३) खण्ड ६ के सम्बन्धमें, मुझे भय है कि उसका वर्तमान रूप जैसा है, उससे सम्भवत: सरकार और समिति द्वारा सोचे हुए परिणामसे बिलकुल विपरीत परिणाम होगा। उसके उपखण्ड (१) के अन्तर्गत एक तुच्छ-सा कारिन्दा एक बेईमान जमींदार द्वारा अबवाब[१] इकट्ठा करनेके कामपर नियुक्त किया जा सकता है। ऐसा कारिन्दा पकड़ा जायेगा तो बिना झिझक इस खण्डमें बताई गई सजाको भुगत लेगा, क्योंकि मैंने जैसा बताया वैसा जमींदार हमेशा उसकी सजा भुगतनेसे होनेवाली क्षतिकी पूर्ति करनेकी व्यवस्था कर रखेगा। इसलिए मेरा सुझाव यह है कि प्रत्येक अवस्थामें दायित्व जमींदारपर ही डालना आवश्यक है। अतः उपखण्ड (१) में संशोधन कर देना चाहिए और उसकी पंक्तिमें से “या उसका कारिन्दा" शब्द निकालकर उसी पंक्तिमें सर्वनाम "जो" के बाद "चाहे सीधे या कारिन्देके द्वारा" शब्द जोड़ देने चाहिए। उक्त खण्डके उपखण्ड ३ को बिलकुल हटा देना चाहिए। सम्भव है, किसी गरीब काश्तकारका मामला ठीक हो, किन्तु फिर भी वह उसे सिद्ध करने में असमर्थ हो। यदि ऐसा भोलाभाला कोई किसान दण्डित हो गया तो यह सरासर अन्याय होगा। इसके अलावा ऐसा उपखण्ड रहेगा जो काश्तकार अबवाब सम्बन्धी शिकायतें पेश करने में डरेंगे और इन शिकायतोंका आना कारगर रूपसे रुक जायेगा। यह भी कहा जाना चाहिए कि झूठी शिकायत करनेपर शिकायत करनेवालोंको दण्ड देनेकी सत्ताका प्रयोग कम ही किया जाना चाहिए। झूठी शिकायतोंके सम्बन्धमें निश्चित परिणामपर पहुँचने के लिए न्यायाधीश अत्यन्त कुशल और मानसिक दृष्टिसे निष्पक्ष होना चाहिए। इसलिए कलक्टरोंको, जो न्यायाधीशकी तरह तोलकर फैसले नहीं देंगे, सरसरी कार्रवाईके अधिकार दे देना खतरनाक होगा। अन्तिम बात यह है कि खण्ड ३ के अन्तर्गत एक भी मामले में अन्याय होनेका परिणाम निश्चित रूपसे यह होगा कि एक बेईमान जमींदारकी हिम्मत बेजा कर-वसूलीके सम्बन्धमें और भी बढ़ जायगी, क्योंकि वह जान लेगा कि उपखण्ड के अन्तर्गत कार्रवाई करनेपर काश्तकारोंको संत्रस्त कर दिया जायेगा। ऊपर बताई स्थितियोंपर विचार करते हुए मैं विश्वास करता हूँ कि उक्त उपखण्ड हटा दिया जायेगा। किन्तु यदि खण्ड ६ में मेरे बताये संशोधन करना कठिन जान पड़े तो मेरा सुझाव है कि यह समस्त खण्ड ही वापस ले लिया जाये। मैं खण्ड ६ के अन्तर्गत दिये गये संदिग्ध संरक्षणके बजाय बंगाल काश्तकारी कानूनके खण्ड ७५ के अन्तर्गत दिये गये कम प्रभावकारी संरक्षणको अधिक पसंद करूँगा।

(४) मैं देखता हूँ, गाड़ियोंका साटा[२], जिसके सम्बन्धमें समितिने विचार किया है, प्रस्तावित कानूनके अन्तर्गत नहीं आता। कुछ साटे ७ से २० साल तक पुराने हैं जिनमें

 
  1. मूल लगानके अतिरिक्त जमीनपर लगाये गये दूसरे कर।
  2. कुछ पेशगी लेकर लिखा गया सामान या साधन देनेका करार।