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भाषण : भगिनी समाज बम्बईमें

जाती हैं और हमारे बहुतसे कार्योंका पूरा परिणाम नहीं निकलता । हमारी स्थिति उस अदूरदर्शी व्यापारीकी स्थिति जैसी है जो आधी पूंजीसे व्यापार करता है। यदि मेरा कहना ठीक हो तो इस संस्थाकी बहुत-सी बहनें, जिन्हें अपनी दशाका भान नहीं है। उन बहनोंको अपनी दशाका भान करानेमें लग जायेंगी । इसका अर्थ यह हुआ कि वे जितना समय मिले उतना बम्बईके पिछड़े हुए वर्गोंमें जाकर उन्हें ज्ञान देनेमें लगायें । यदि आप पुरुष वर्गकी धार्मिक, राजनीतिक और सांसारिक प्रवृत्तिमें भाग लेने लगी हैं, तो आप उन्हें उसका भी ज्ञान दें। यदि आपने बच्चोंके पालन-पोषणका समस्त ज्ञान प्राप्त किया है तो आप वह ज्ञान भी उन्हें दें । यदि आपने स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल, शुद्ध और सात्विक भोजन एवं व्यायाम आदिके स्थूल और सूक्ष्म लाभ पढ़े हैं और उनका अनुभव प्राप्त किया है तो वह ज्ञान और अनुभव इन बहनोंको बतायें । इस प्रकार आप अपनी और उन सभीकी उन्नति करेंगी।

यद्यपि इस प्रकार पढ़े-लिखे बिना बहुत से कार्य किये जा सकते हैं तो भी मेरा ख्याल यह है कि सदा पढ़े-लिखे बिना काम नहीं चल सकता। पढ़ने-लिखनेसे बुद्धि विकसित और तीव्र होती है एवं हमारी परोपकार करनेकी क्षमता बहुत बढ़ जाती है। किन्तु मैंने पढ़ने-लिखनेकी कीमत कभी ऊँची नहीं आँकी । मैंने तो उसे केवल उचित स्थान देनेका प्रयत्न किया है । मैं समय-समयपर यह बताता रहा हूँ कि पुरुषोंका स्त्रियोंसे उनके स्वाभाविक मानवीय अधिकार छीन लेने अथवा उन्हें प्रदान न करनेका कारण, स्त्रियोंमें विद्याका अभाव नहीं होना चाहिए; किन्तु निश्चय ही इन स्वाभाविक अधिकारोंको कायम रखने, उनमें वृद्धि करने और उनको प्रचारित करनेके लिए विद्याकी आवश्यकता है । फिर विद्याके बिना लाखों लोगोंको तो शुद्ध आत्मज्ञान भी प्राप्त नहीं हो सकता। अनेक लेखोंमें ऐसा अखूट ज्ञानभण्डार भरा है जिससे हमें निर्दोष आनन्द प्राप्त हो सकता है; यह आनन्द भी विद्याके बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता । विद्याके बिना मनुष्य पशुवत् है, इस कथनमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। बल्कि यह यथार्थ है। इसलिए पुरुषोंकी भांति स्त्रियोंके लिए भी शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक है। मेरा ख्याल यह नहीं है कि जैसे पुरुषोंको शिक्षा दी जाती है वैसे ही स्त्रियोंको दी जानी चाहिए। प्रथम तो जैसा मैंने कहीं-कहीं कहा है, हमारी सरकारी शिक्षा प्राय: भ्रमपूर्ण और हानिकर है और यह दोनों वर्गोंके लिए पूर्णत-त्याज्य है। यदि उसके दोष दूर भी कर दिये जायें तो भी में नहीं मानता कि वह स्त्रियोंके लिए सर्वथा उपयुक्त ही है। स्त्री और पुरुषका दर्जा समान है, एक ही नहीं है। दोनोंकी जोड़ी अपूर्व है, दोनों एक-दूसरेके पूरक हैं और एक-दूसरेके यहाँतक सहायक हैं कि एकके अभावमें दूसरेका अस्तित्व सम्भव ही नहीं है। किन्तु यदि पुरुष अथवा स्त्री स्थान-भ्रष्ट हो जाये तो दोनों ही नष्ट हो जायेंगे यह सार ऊपर किये गये विवेचनसे ही निकलता है। इसलिए स्त्री-शिक्षाकी योजना तैयार करनेवाले लोगोंको यह बात सतत् स्मरण रखनी चाहिए। दम्पतीकी बाह्य प्रवृत्तिमें पुरुष प्रमुख होता है, इसलिए बाह्य प्रवृत्तिका विशेष ज्ञान उसके लिए आवश्यक है । आन्तरिक प्रवृत्तिमें स्त्री प्रमुख होती है, इसलिए गृह-व्यवस्था और बाल-बच्चोंकी शिक्षा-दीक्षा आदि विषयोंका विशेष ज्ञान उसके लिए आवश्यक है। खयाल यह नहीं है। किसीके लिए कोई १४-१३ Gandhi Heritage Portal